
बीएसएफ एक्ट में संशोधन
नरेंद्र शर्मा
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अपने 11 अक्टूबर 2021 के गजट नोटिफिकेशन के जरिये बीएसएफ एक्ट में संशोधन करते हुए तीन राज्यों में सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के कार्य क्षेत्र में वृद्धि की है और एक राज्य में उसके कार्य क्षेत्र में कमी की है। बीएसएफ के पास अब पंजाब, पश्चिम बंगाल व असम में अंतर्राष्ट्रीय सीमा से 50 किमी की चैड़ाई तक पुलिस शक्तियां लागू करने का अधिकार होगा, जबकि पहले यह चैड़ाई 15 किमी थी। इसका अर्थ यह है कि अब इन तीनों राज्यों में बीएसएफ 35 किमी अतिरिक्त क्षेत्र में तलाशी, बरामदगी व गिरफ्तारी कर सकती है, जबकि पहले यह जिम्मेदारी राज्यों की पुलिस की थी। लेकिन गुजरात में बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र को कम किया गया है। तीन राज्यों में बीएसएफ का कार्य क्षेत्र बढ़ाना व एक में कम करने का कोई कारण व तर्क नहीं दिया गया है और न ही यह स्पष्ट है कि इस समय इसकी क्या आवश्यकता थी? क्या सीमा क्षेत्र की चैड़ाई अपर्याप्त थी? अगर हां, तो किस तरह से? क्या बीएसएफ ने केंद्र सरकार से आग्रह किया था कि उसे सीमा पर तस्करी व अन्य अवैध गतिविधियों को छोटे क्षेत्र के कारण रोकने में कठिनाई हो रही है? क्या इस सिलसिले में राज्य सरकारों से पहले कोई बात की गई थी?
इस विवादित निर्णय पर राज्यों की प्रतिक्रिया तो आश्चर्य भरी रही है, इसलिए अंदाजा यही है कि उनसे कोई मश्विरा नहीं लिया गया। मसलन, पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने इसे फेडरलइज्म (संघवाद) के सिद्धांत पर हमला बताया है क्योंकि बीएसएफ केंद्रीय अर्द्धसैनिक बल (सीपीएमएफ) है जो केंद्र सरकार को रिपोर्ट करता है, जबकि संविधान के तहत पुलिस द्वारा कानून व्यवस्था बनाये रखना राज्य का विषय है। एक अंग्रेजी दैनिक ने अधिकारियों (जिनका नाम नहीं बताया गया है) के हवाले से कहा है कि बीएसएफ का कार्य क्षेत्र ‘ऑपरेशनल क्षमता बेहतर बनाने’ व ‘तस्करी रोकने’ के लिए बढ़ाया गया है। लेकिन इस स्पष्टीकरण से भी अनेक सवाल उठते हैं। बीएसएफ की ‘ऑपरेशनल क्षमता’ केवल तीन राज्यों में ही क्यों बढ़ानी है? क्या राज्य पुलिस 15 किमी से 50 किमी के क्षेत्र में तस्करों से मिली हुई थी या बीएसएफ के कार्य में रोड़े अटका रही थी? हालांकि ड्रग्स को लेकर पंजाब अधिक बदनाम है, शायद ‘उड़ता पंजाब’ जैसी फिल्मों के कारण, लेकिन अधिकारिक डाटा से मालूम होता है कि 2019-20 में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना व तमिलनाडु से अधिकांश ड्रग्स बरामद हुईं, जबकि 2018-19 में सबसे ज्यादा ड्रग्स बिहार, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र व असम से बरामद हुई थीं। पंजाब तो इस सूची में था ही नहीं।
15 अक्टूबर 2021 को जशपुर (छतीसगढ़) में दशहरा मना रहे लोगों पर जो बेकाबू कार चढ़ी, जिससे एक व्यक्ति की मौत व 20 अन्य घायल हुए, वह गांजे से भरी हुई थी। इसलिए अगर मुख्य चिंता तस्करी को लेकर है तो बीएसएफ कार्य क्षेत्र पंजाब में बढ़ाने का क्या तर्क है? ध्यान रहे कि कुछ पानी के क्षेत्रों को छोड़कर पंजाब में जो अंतर्राष्ट्रीय सीमा है उसकी पूरी फेंसिंग हो रखी है। अगर इसके बावजूद पंजाब में तस्करी हो रही है तो फिर बीएसएफ अधिकारियों व पूरी व्यवस्था की कार्यशैली पर सवाल उठते हैं। जाहिर है अगर फेंसिंग में कहीं ‘छेद’ है तो कार्य क्षेत्र बढ़ाने से बीएसएफ की कार्यशैली में सुधार नहीं आयेगा। गौरतलब है कि भारत की सीमाओं व उससे संबंधित मामलों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बीएसएफ का गठन एक दिसम्बर 1965 में हुआ था। लेकिन बीएसएफ एक्ट, 1968 के तहत उसे अंतर्राष्ट्रीय सीमा से 15 किमी के अंदर पुलिस कार्य की जिम्मेदारी भी सौंपी गई क्योंकि उन दिनों राज्य पुलिस के पास मैनपॉवर आमतौर से कम थी, विशेषकर सीमावर्ती क्षेत्रों में। इसकी भरपाई करने के लिए ही बीएसएफ का गठन हुआ था और फिर उसे सीमा क्षेत्र में बीएसएफ एक्ट की धारा 139 के तहत पुलिस शक्तियां भी प्रदान कर दी गईं ताकि कस्टम, फेरा, पासपोर्ट, सेंट्रल एक्साइज, विदेशी आदि कानूनों को सही से लागू किया जा सके। उस समय ऐसा किया जाना कई कारणों से ठीक भी था।
सबसे पहली बात तो यह कि साठ व सत्तर के दशकों में वायरलेस सुविधा खराब व टेलीफोन दुर्लभ थे, अधिकतर उच्च अधिकारियों व सरकारी कार्यालयों के अधिकारिक फोनों में एसटीडी सेवा प्रदान नहीं की गई थी। ट्रंक कॉल पर निर्भरता थी, जिसके लिए लम्बी प्रतीक्षा करनी पड़ती थी। इंटरनेट व स्मार्टफोन तो थे ही नहीं। दूसरा यह कि सड़कें खराब थीं, खासकर सीमा क्षेत्रों में, पुलिस स्टेशनों में गिनती के वाहन थे, एक थानाध्यक्ष को आमतौर से मोटरसाइकिल से ही काम चलाना पड़ता था। वरिष्ठ अधिकारियों को जीप अवश्य मिलती थी, लेकिन उसे चलाने के लिए माह में 45 लीटर पेट्रोल ही मिलता था। बीएसएफ व सेना जैसे सुरक्षाबलों को अमूमन ट्रकों पर ही निर्भर करना पड़ता था। इस स्थिति में सीमा पर तैनात बलों को अंधेरे में अपने आप ही काम करना पड़ता था। बहरहाल, उसके बाद से राज्य के पुलिस बलों का दोनों मैनपॉवर व संसाधनों की दृष्टि से अप्रत्याशित विस्तार हुआ है, राज्यों की पुलिस के पास आज ट्रांसपोर्ट, कम्युनिकेशन आदि सुविधाओं की कोई कमी नहीं है, अब वह अपने राज्यों में कहीं से भी आरोपी व्यक्तियों को सीआरपीसी (अपराधिक प्रक्रिया संहिता) में निर्धारित समय सीमा के भीतर संबंधित अदालत में पेश कर सकती है। अब तो बीएसएफ की हर बटालियन के पास भी अलग अलग प्रकार के कम से कम 50 वाहन हैं, जिसका अर्थ है कि वह गिरफ्तारी या बरामदगी करते ही आगे की कार्यवाही के लिए राज्य पुलिस से तुरंत संपर्क कर सकती और राज्य पुलिस भी उस तक आसानी से पहुंच सकती है।
आजकल तो अनेक जगहों पर राज्य पुलिस व बीएसएफ एक-दूसरे से निरंतर संपर्क में रहते हैं। इसलिए गुजरात में बीएसएफ के कार्य क्षेत्र को कम करना तो समझ में आता है, लेकिन पंजाब, पश्चिम बंगाल व असम में कार्य क्षेत्र को बढ़ाने की तुक समझ से परे है, हां अगर उद्देश्य राज्यों के अधिकारों में कटौती करने का है तो अलग बात है। बीएसएफ महानिदेशक एसएस देसवाल अधिकारिक तौरपर अपने बल की भूमिका ‘सीमा प्रबंधन’ बताते हैं, जोकि खासी अस्पष्ट व्याख्या है। बीएसएफ की वेबसाइट (13 अक्टूबर को देखने पर) बताती है कि शांति के समय बीएसएफ की जिम्मेदारियों में शामिल हैं अंतर-सीमा अपराध रोकना, भारत की भूमि से अवैध आने-जाने को रोकना और साथ ही तस्करी व अन्य अवैध गतिविधियों को रोकना। यह अपने आप में बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। इसलिए बीएसएफ पर अतिरिक्त बोझ डालने की तुक समझ में नहीं आता है, खासकर जब राज्यों की पुलिस पर्याप्त सक्षम है। अगर इस नये फैसले का उद्देश्य तस्करी रोकना ही है तो फिर गुजरात में बीएसएफ के कार्य क्षेत्र को कम क्यों किया गया, जहां हाल ही में एक पोर्ट से लगभग 3000 किलो हेरोइन बरामद हुई। यह सही है कि यह बरामदगी पोर्ट से हुई, लेकिन क्या तस्कर केवल एक ही रूट का इस्तेमाल करते हैं? नहीं वह लैंड रूट का भी प्रयोग करते हैं और यह भी ध्यान रखना चाहिए कि खाड़ियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी बीएसएफ की ही है।
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)