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ताकि हो सके रोगियों की बेहतर देखभाल और उपचार नरेंद्र शर्मा महत्वाकांक्षी आयुष्मान भारत डिजिटल हेल्थ मिशन की कल्पना पूर्ण डिजिटल हेल्थ इकोसिस्टम के तौरपर की गई है। इसके तहत प्रत्येक भारतीय की स्वास्थ आईडी होगी, व्यक्तिगत हेल्थ रिकार्ड्स का डिजिटाइजेशन होगा और साथ ही देशभर के डॉक्टरों व स्वास्थ्य सुविधाओं की रजिस्ट्री होगी। गौरतलब है कि 15 अगस्त 2020 को इस मिशन का पायलट प्रोजेक्ट छह केंद्र शासित प्रदेशों में लागू किया गया था और 27 सितम्बर 2021 से इसे पूरे देश के लिए लांच किया गया है। मिशन के संदर्भ में सरकारी दावा यह है कि नागरिकों की अनुमति के बिना उनके हेल्थ रिकार्ड्स एक्सेस व एक्सचेंज नहीं किये जायेंगे। यह डिजिटल इकोसिस्टम डॉक्टरों, अस्पतालों व हेल्थकेयर सर्विस प्रोवाइडर्स के लिए व्यापार करने में आसानी सुनिश्चित करेगा। साथ ही गरीबों व मध्य वर्ग को मेडिकल उपचार कराने में जो समस्याएं आती हैं, उनके समाधान में भी इस मिशन की बड़ी भूमिका होगी। इस मिशन के तहत एक विशेष डिजिटल हेल्थ आईडी लोगों को उपलब्ध करायी जायेगी, जिसमें उनके हेल्थ रिकार्ड्स होंगे, इससे डिजिटल हेल्थ सिस्टम के भीतर अंतरसक्रियता सुनिश्चित हो सकेगी। किसी भी सरकारी अस्पताल, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र या हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर या कोई भी हेल्थकेयर प्रोवाइडर जो हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर रजिस्ट्री में शामिल हो, कि मदद से हेल्थ आईडी हासिल की जा सकती है। मोबाइल या वेब एप्लीकेशन पर स्वयं रजिस्ट्रेशन करके भी हेल्थ आईडी हासिल की जा सकती है। आईडी बनाने के लिए व्यक्ति को व्यक्तिगत, डेमोग्राफिक व कांटेक्ट सूचना संबंधित स्वास्थ्य सुविधा केंद्र पर कंसेंट मैनेजर को उपलब्ध करानी होगी। इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि अस्पतालों को रोगियों के लिए सुरक्षित बनाने की आवश्यकता है। अगर यह ज़रूरत न होती तो जब हम अपने प्रियजन को अस्पताल में भर्ती कराते समय यह सवाल न करते कि कौन-सा डॉक्टर रोगी की देखभाल करेगा? दरअसल, हेल्थकेयर डिलीवरी में उपचार प्रोटोकॉल्स का पालन करना अति कठिन है; क्योंकि भारत सहित सभी विकासशील देशों के लगभग 90 प्रतिशत अस्पतालों में इलेक्ट्रॉनिक मेडिकल रिकार्ड्स (ईएमआर) नहीं हैं। ईएमआर की मदद से रोगी के इर्दगिर्द हो रही घटनाएं डॉक्यूमेंट हो जाती हैं यानी हमें अपने मोबाइल प्लेटफार्म पर यह मालूम रहता है कि अस्पताल में हमारे रोगी से संबंधित डाटा- मशीनों, लैब्स, नर्सों, तकनीशियनों व डॉक्टरों के बीच किस प्रकार से घूम रहा है। इसे यूं भी कहा जा सकता है कि रोगी की देखभाल किस प्रकार हो रही है, इसकी हमें जानकारी रहती है। वर्तमान में जिस प्रक्रिया का पालन किया जाता है उसमें अगर रोगी में कोई जटिलता विकसित हो जाये तो जिस बात से समस्या उत्पन्न हुई उसे ट्रैक करना कठिन हो जाता है। क्योंकि बेड के बराबर में जो पेपर रिकार्ड्स रखे जाते हैं, उनमें समीक्षा व व्याख्या के लिए पर्याप्त जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। रोग के वास्तविक कारण की समीक्षा न कर पाना डॉक्टरों व सिविल सोसाइटी के लिए चिंता का विषय है। गौरतलब है कि सितम्बर 2018 में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने डॉक्टरों को आदेश दिया था कि वह दवाओं का नुस्खा कागज़ पर नहीं बल्कि डिजिटली देंगे ताकि नुस्खे की त्रुटियों से बचा जा सके। लेकिन उस समय इस आदेश का पालन करने के लिए अच्छे डिजिटल टूल्स उपलब्ध नहीं थे। बहरहाल, अब लगता है कि आयुष्मान भारत डिजिटल हेल्थ मिशन के लांच होने से स्थितियों में सकारात्मक परिवर्तन आयेंगे। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर डॉक्टरों, नर्सों व तकनीशियनों को कागज़ कलम की जगह स्मार्ट डिजिटल टूल्स उपलब्ध करा दिए जायेंगे तो हेल्थकेयर में रुग्णता व मृत्यु दर में काफी कमी आ जायेगी, हेल्थकेयर उपलब्धता में जबरदस्त सुधार आयेगा और हेल्थकेयर के खर्चे में भी काफी कमी आ जायेगी। आज डॉक्टरों के लिए यह बहुत कठिन है कि रोगी का सही क्लिनिकल डायग्नोसिस करने के लिए सारा मेडिकल डाटा हासिल कर सकें। संभावित मानव चूक करने के डर से डॉक्टरों पर जबरदस्त दबाव रहता है। अगर ईएमआर विकसित कर लिया जाता है तो रोगियों का उपचार करने में डॉक्टरों को आसानी होगी। उनसे भूल-चूक की आशंका भी कम ही रहेगी। लेकिन यह बात भी सही अगर ईएमआर हेल्थकेयर में क्रांति ला सकता है तो अमेरिकी हेल्थकेयर संघर्ष क्यों कर रहा है? अमेरिकी डाक्टरों के बर्नआउट की ईएमआर मुख्य वजह क्यों है? ऐसा इसलिए क्योंकि अमेरिका में ईएमआर को पूर्णतः बिलिंग सॉफ्टवेयर के तौरपर विकसित किया गया था और उसमें मेडिकल कॉम्पोनेंटस को बाद में डाला गया। अगर आयुष्मान भारत डिजिटल हेल्थ मिशन ईएमआर को मेडिकल कॉम्पोनेंटस के साथ प्रोत्साहित करे तो यह देशव्यापी हो सकता है और इससे बहुत लाभ भी होगा। चूंकि विशेष डिजिटल हेल्थ आईडी में क्रोनिक रोगी का मेडिकल रिकॉर्ड उसके फोन में ही होगा, जिसे कहीं भी कंप्यूटर पर देखा जा सकेगा, तो डॉक्टरों को बार-बार रोगी से उसका पारिवारिक व मेडिकल इतिहास मालूम नहीं करना पड़ेगा। सिरदर्द से कैंसर तक के लिए रोगी का डॉक्टर से पहला संपर्क ऑनलाइन होगा। इस तरह छोटी-छोटी बातों के लिए रोगी को अस्पताल जाने की जरूरत नहीं होगी। निरंतर ऑनलाइन मोनिटरिंग से मसलन डायबिटीज को बेहतर नियंत्रित किया जा सकेगा क्योंकि रोगी के लगभग सभी टेस्ट तो क्लाउड पर मौजूद होंगे, जिन्हें कहीं पर भी देखा जा सकेगा। कहने का अर्थ यह है कि दिल्ली में बैठा रोगी आसानी से मुंबई के डॉक्टर को कंसल्ट कर सकेगा। सीनियर डॉक्टरों से सेकंड ओपिनियन भी ली जा सकेगी। नीम-हकीमों की दुकानें बंद हो जायेंगी क्योंकि सिर्फ पंजीकृत डॉक्टर ही डिजिटल प्रिस्क्रिप्शन पैड्स पर दवा नुस्खे लिख सकेंगे। मेडिसिन स्ट्रिप्स की बारकोडिंग के कारण नकली दवाओं पर भी विराम लग सकता है। अनुमान यह है कि आयुष्मान भारत डिजिटल हेल्थ मिशन संसार में सबसे बड़ा हेल्थ प्रोवाइडर होगा, लेकिन इसके न अपने बेड्स होंगे न अस्पताल क्योंकि यह तो एक हेल्थएप्प है। इसके बावजूद यह समस्या तो फिलहाल रहेगी कि भारत में कितने लोगों के पास डिजिटल एक्सेस है और अगर है भी तो कितने लोग इसका इस्तेमाल करना जानते हैं। फिर भाषा की अपनी समस्या है। जब तक डिजिटल साक्षरता नहीं बढ़ती तब तक आयुष्मान भारत डिजिटल हेल्थ मिशन से पूरा संभावित लाभ मिलना शायद कठिन है। (लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)