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अब नहीं रुकी तो दुनिया में प्रलय को
भी कोई नहीं रोक सकता
लोकमित्र दुनियाभर के जलवायु वैज्ञानिकों के बीच इन दिनों ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन का यह भाषण गंभीर चर्चा का विषय बना हुआ है, जो उन्होंने संयुक्तराष्ट्र महासभा में इसी 23 सितंबर 2021 को दिया है। संयुक्तराष्ट्र के अपने इस संबोधन में उन्होंने कहा है कि ग्लोबल वार्मिंग की समस्या पर या तो अभी विराम लगेगा या फिर कभी नहीं। गौरतलब है कि इसी साल नवंबर माह में इंग्लैंड के ग्लासगो में जलवायु परिवर्तन सम्मेलन होने जा रहा है। यूं तो यह सम्मेलन पहले साल 2020 में ही होने वाला था, लेकिन पूरी दुनिया के कोरोना की गिरफ्त में होने के कारण,पिछले साल यह सम्मेलन टल गया था। इस सम्मेलन का मूल उद्देश्य, धरती के तापमान में पिछली एक सदी में जो 1.5 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी हुई है, इस बढ़ोत्तरी को यहीं रोक देना है। क्योंकि विशेषज्ञों के मुताबिक अगर यह तापमान वृद्धि अब नहीं रुकी तो दुनिया में प्रलय को भी कोई नहीं रोक सकता। वैज्ञानिकों को कई दशकों पहले ही पता चल गया था कि धरती लगातार गर्म होती जा रही है। फिर भी तमाम चेतावनियों के बावजूद पृथ्वी के लगातार गर्म होने का सिलसिला नहीं रुका। क्योंकि दुनिया के तापमान में लगातार हो रही वृद्धि का सबसे बड़ा कारण पेड़ों की अंधाधुंध कटाई है। धरती की आबादी 7 अरब से ज्यादा है और हर साल 15 अरब से ज्यादा पेड़ काटे जा रहे हैं यानी धरती की आबादी के दो गुना पेड़ हर साल काटे जा रहे हैं। पेड़ों की इस अंधाधुंध कटाई की किसी सूरत में भरपायी तभी हो सकती थी, जब जितने पेड़ काटे जा रहे हैं, उससे दो गुना ज्यादा लगाये जा रहे होते। लेकिन इस मामले में हैरानी भरी सच्चाई ये है कि दुनिया में हर साल महज 5 अरब नए पेड़ लगाए जा रहे हैं। यह अनुमानित आंकड़ा अमरीकी स्पेस संगठन नासा का है जो कि एक उपग्रहीय अध्ययन पर आधारित है। इस तरह इस अनुमान के मुताबिक धरती से हर साल जितने पेड़ काटे जा रहे हैं, उसके एक तिहाई ही लगाये जाते हैं और इन लगाये गये पेड़ों में आधे से ज्यादा सालभर के भीतर ही मुरझा जाते हैं। मतलब यह कि धरती में हर साल काटे जाने वाले और लगाये जाने के बाद तैयार होने वाले पेड़ों के बीच का फासला बहुत खतरनाक है। दुनिया में जितने पेड़ हर साल काटे जाते हैं,उसके सिर्फ 20 फीसदी के बराबर नये पेड़ तैयार होते हैं। एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि काटे जाने वाले पेड़ और तैयार होने वाले नये पेड़ों के द्रव्यमान (मास) में एक चैथाई का फर्क होता है। साथ ही यह सच्चाई भी ध्यान देने योग्य है कि दुनिया के विकसित देश बिगड़ते पर्यावरण को लेकर हाय तौबा भले बहुत ज्यादा मचाते हों, लेकिन इस बिगड़ती पारिस्थितिकी को सुधारने और संभालने के लिए कुछ खास नहीं कर रहे। दुनिया में हर साल जितने पौधे रोंपे जाते हैं उसमें भारत और चीन का योगदान सबसे ज्यादा है। क्योंकि कुल वनीकरण का एक तिहाई भारत और चीन कर रहे हैं। जबकि इस मामले में हायतौबा विकसित देश ज्यादा मचा रहे हैं। उल्टे प्रदूषण की आड़ में ये देश हर समय अपनी ग्रीन टेक्नोलॉजी के कारोबार को बढ़ाने की फिराक में रहते हैं। यही वजह है कि दशकों से लगातार दिए जा रहे उपदेशों के बावजूद धरती के बढ़ते हुए तापमान में कमी नहीं आ रही। नासा के उपग्रहों से हासिल आंकड़ों से पता चलता है कि धरती के एक तिहाई पौधे चीन और भारत लगा रहे हैं। लेकिन चीन और भारत के कुल वन धरती के सारे वनों का 9 फीसदी ही हैं। हाल के सालों में पेड़ पौधों से ढके क्षेत्र में जो वैश्विक बढ़ोत्तरी हुई है, उसमें अकेले 25 फीसदी योगदान चीन का है। चीन की वैश्विक वन क्षेत्र में हिस्सेदारी 6.6 फीसदी है। जबकि भारत में वनाच्छादित क्षेत्रफल,हमारी कुल भूमि का 4.4 प्रतिशत है। जहां तक दुनिया में प्रति व्यक्ति पेड़ों की उपलब्धता का सवाल है तो आज की तारीख में हर व्यक्ति के पीछे 422 पेड़ हैं। लेकिन हर समय अच्छी तरह से स्वस्थ वायु और वातावरण हासिल करने के लिए धरती के हर व्यक्ति के हिस्से में करीब 600 पेड़ होने चाहिए। वह भी पूर्ण विकसित सघन पेड़। लेकिन 422 पेड़ का यह जो आंकड़ा है, वह भी चार साल पुराना है और इस दौरान 60 अरब से ज्यादा पेड़ कट चुके हैं। धरती में हर साल जो 15 अरब से ज्यादा पेड़ काटे जाते हैं, उनमें 10 अरब पेड़ इमारती लकड़ी हासिल करने के लिए काटे जाते हैं। लब्बोलुआब यह कि हम धरतीवासी इस बात को भलीभांति जानते हैं कि आखिर लगातार बढ़ रही ग्लोबलवार्मिंग का कारण क्या है? लेकिन दिक्कत यही है कि सब कुछ जानने, समझने के बावजूद हम उसको सुधारने की कोशिश नहीं कर रहे। जब से धरती का अस्तित्व है, तब से लेकर आजतक धरती में जितने पेड़ थे, उनमें से अब आधे से ज्यादा कट चुके हैं। पेड़ों के कटने की सबसे तेज रफ्तार पिछली दो सदियों में देखने को मिली है। समूचे इतिहास से 10 गुना ज्यादा। 19वीं और 20वीं शताब्दी में पेड़ों की अंधाधुंध कटाई की गयी है। इसकी वजह है हमारी आधुनिक जीवनशैली। इन दो सदियों में ही धरती के सभी संसाधनों को बेहूदा ढंग से इस्तेमाल करने की प्रवृत्ति बढ़ी है। हम जितना खाते हैं,उससे ज्यादा बर्बाद करते हैं,पर्यावरण को इसकी भी कीमत चुकानी पडती है। ऐसे में अगर कहा जाए कि धरती की बिगड़ती सेहत का सबसे बड़ा कारण धरतीवासियों की मौजूदा जीवनशैली है तो इसमें अतिश्योक्ति नहीं होगी। बोरिस जॉनसन ने दुनियाभर के राजनेताओं को जिम्मेदार होने के लिए आगाह किया है, उन्होंने साफ शब्दों में कहा है कि अगर हमने ग्लोबलवार्मिंग को इसी जगह नहीं रोका तो इस समस्या से कभी छुटकारा नहीं पा सकते। इसलिए हर कोई सिर्फ दूसरे को जागरूक करने के लिए धरती के बिगड़ते पारिस्थितिकी तंत्र का खाका न खींचे। वक्त आ गया है कि आगे बढ़कर दुनिया धरती के बढ़ते तापमान को रोकने के लिए व्यवहारिक उपाय करे, वरना हमेशा हमेशा के लिए धरती को साफ सुथरा और प्रदूषणमुक्त देखने के सपने का अंत हो जायेगा। (लेखक विशिष्ट मीडिया एवं शोध संस्थान इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर में वरिष्ठ संपादक हैं)