
चन्नी के मुख्यमंत्री बनने से लेकर
उनकी चर्चा की कई वजहें हैं
प्रदीप श्रीवास्तव
बीता इतवार यानी 19 सितंबर 2021 का पूरा दिन चंडीगढ़ से लेकर नई दिल्ली के दस जनपथ तक,पल पल गहमागहमी और गलतफहमियों का दिन रहा। कभी किसी की हवा बन रही थी, कभी किसी की हवा निकल रही थी। यहां तक कि कुछ नामों की तो घोषणा भी हो गई, लोगों ने लड्डू भी खा लिए। यह अलग बात है कि लड्डू खिलाने वालों को देर शाम सियासी चकमा खाना पड़ा। धोखा मीडिया वालों ने भी खाया। टीवी चैनलों में बाईट चल गयी, बधाइयां मिल गयीं लेकिन इतवार की शाम आते आते सब कुछ उलट-पलट हो गया। शाम 6ः33 मिनट पर फ्लैश हुए एक ट्वीट ने सारी कहानी बदल दी।
यह ट्वीट कांग्रेस के पंजाब प्रभारी हरीश रावत का था, जिसमें उन्होंने कहा था, ‘मुझे यह घोषणा करते हुए बहुत खुशी हो रही है कि चरनजीत सिंह चन्नी पंजाब के अगले मुख्यमंत्री होंगे, उन्हें सर्वसम्मति से पंजाब कांग्रेस विधायक दल का नेता चुना गया है।’ जाहिर है इसके बाद सुखजिंदर रंधावा के के लड्डू बरबाद हो गये, सुनील जाखड की बहुअर्थी बाईट बेकार गयीं। इस तवीत के बाद वह सारी गणित और इस गणित के तथ्य बेकार हो गए,जो सूत्रों माध्यम से पूरे दिन छन-छनकर आ रहे थे। जिनसे पता चल रहा था कि पंजाब में 16वें मुख्यमंत्री के लिए सुनील जाखड़ को 38, सुखजिंदर सिंह रंधावा को 18, कैप्टन अमरिंदर सिंह की पत्नी परनीत कौर को 12 और पंजाब कांग्रेस के मुखिया सिद्धू को महज 5 वोट मिले हैं।
हालांकि इन सूत्रों की सूचनाओं में कहीं भी कोई मास्टर स्ट्रोक नहीं था। मास्टर स्ट्रोक तो वास्तव में अचानक लगा शाम 6ः30 के बाद। कैप्टेन के खुलेआम विरोधी रहे चरनजीत सिंह चन्नी का नाम जैसे ही फ्लैश हुआ, इसके बाद मीडिया में मास्टर स्ट्रोक की कहानी घूमने लगी। क्योंकि यह कहानी कई वजहों से पंजाब के मौजूदा राजनीतिक हालात और समीकरणों में बिल्कुल फिट बैठ रहा था। इसलिए अब शायद ही कोई यह माने कि 19 सितंबर को शाम 6ः30 तक इस मास्टर स्ट्रोक की दूर-दूर तक कहीं कोई झलक नहीं दिख रही थी। यह अलग बात है कि एक बार इस थ्योरी के बाहर आने के बाद सबने बढ़ चढ़कर इसका श्रेय लूटने की कोशिश की। सिद्धू पलक झपकते ही चन्नी के शुभ संरक्षक बन गए तो रंधावा ने कहा चन्नी उनका छोटा भाई है उसके मुख्यमंत्री बनने से वह बहुत खुश हैं।
बहरहाल राजनीति में संयोग से भी चमकी कौंधें इतिहास बदल देती हैं। और अगर आज कांग्रेस कह रही है कि उसने आजादी के बाद पिछले 74 सालों में पंजाब, हिमाचल, हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली में पहला दलित मुख्यमंत्री बनाये जाने का गौरव हासिल किया है, तो यह गलत नहीं है। लेकिन पलट के सवाल तो पूछा ही जा सकता है कि आखिर आपने 74 साल क्यों लगाये? आजादी के तुरंत बाद ही यह काम क्यों नहीं किया? क्योंकि तब तो आपकी ताकत का प्रतीकात्मक विरोध भी नहीं था। बहरहाल यह समय चुभते सवाल पूछने का नहीं है। पंजाब में अगली विधानसभा के लिए होने वाले चुनावों के नतीजों के अनुमान लगाने का है।
आज हर किसी के दिल दिमाग में एक ही सवाल है कि क्या यह संयोग से हुई व्यवस्था अगले चार पांच महीनों में कोई राजनीतिक माहौल बना पायेगी, जिससे लगातार दूसरी बार कांग्रेस राज्य में लौटने का चमत्कार कर सकेगी ? इसमें कोई दो राय नहीं है कि पंजाब की राजनीति में मतदाताओं का जो यह जातीय समीकरण है, उसमें 56 फीसदी सिखों के बाद दूसरा आंकड़ा 32 फीसदी से ज्यादा दलितों का ही है। हालांकि इन 56 फीसदी में आधे से ज्यादा 32 फीसदी का आंकड़ा ही शामिल है। लेकिन राजनीति के लिहाज से यह एक चमत्कार रच सकने वाला समीकरण है । इस समीकरण की ताकत का बखान सिर्फ कांग्रेस अपने मास्टर स्ट्रोक से ही नहीं कर रही, पंजाब की सभी राजनीतिक पार्टियों ने इसी समीकरण को ध्यान में रखकर पंजाब में अहले विधानसभा चुनाविन की विसात बिछाई है ।
कांग्रेस के पहले शिरोमणि अकाली दल (शिअद) ने भी इसी समीकरण को ध्यान में रखकर बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ समझौता कर चुकी है। हम सब जानते हैं कि शिअद का यह समझौता समीकरण कोई हवा हवाई नहीं है, करीब 25 साल पहले जब पहली बार शिअद और बसपा ने चुनावी गठबंधन किया था- साल 1996 के लोकसभा चुनाव में, तब इस गठबंधन ने 13 में से 11 लोकसभा सीटें जीत ली थीं।
इसलिए अगर पंजाब की राजनीति में दलित मतदाताओं को एक बड़ी ताकत समझा जाता है, तो इसमें ठोस सच्चाई है। पंजाब के कुछ इलाकों मसलन कपूरथला, नवा शहर, जालंधर और होशियापुर में दलित मतदाताओं की संख्या 40 फीसदी से ज्यादा है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि कांशीराम का तालुक पंजाब से ही था और वे जिस रामदसिया सिख समुदाय संबंध रखते थे, चरनजीत सिंह चन्नी भी उसी समुदाय से हैं।
कांग्रेस के पहले सिर्फ शिअद ने ही नहीं आम आदमी पार्टी ने भी इसी समीकरण को भुनाने के लिए प्रदेश में बनने वाली अपनी सरकार में डिप्टी सी एम का पद किसी दलित को दिए जाने की घोषणा की है। लेकिन अब शायद आप और शिअद को वह कामयाबी न मिले, जो कांग्रेस के इस मास्टर स्ट्रोक की अनुपस्थिति में मिलती। लेकिन हमें इस सबके बीच किसी मुख्यमंत्री की तमाम काबिलियत को महज मतदाताओं के जातीय समीकरण में ही नहीं लुटा देना चाहिए। हमें चरनजीत सिंह चन्नी की निजी खूबियों और उनके अब तक के सियासी कौशल पर भी नजर डालनी चाहिए और उनके भविष्य की सफलताओं का आंकलन उनकी इस योग्यता से भी किया जाना चाहिए। चरनजीत सिंह का जन्म एक गरीब दलित परिवार में 2 मार्च 1963 को हुआ था। चरनजीत सिंह चन्नी अब तक तीन बार विधायक रह चुके हैं। एक बार निर्दलीय और दो बार कांग्रेस पार्टी से वह चुनाव जीत चुके हैं। मौजूदा समय में वह रूपनगर की चमकौर साहिब विधानसभा क्षेत्र से विधयक हैं। 2015 से 2016 के बीच वह पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता भी रह चुके हैं।
पिछली अमरिंदर सिंह सरकार में वह तकनीकी शिक्षा और औद्योगिक प्रशिक्षण मंत्री थे। चरनजीत सिंह चन्नी कैप्टन अमरिंदर सिंह की कैबिनेट में कुछ गिने चुने मंत्रियों में से थे, जो बेहद पढ़े लिखे हैं। उनके पास कानून और एमबीए की डिग्री है। उन्होंने खरड के खालसा हायर सैकेंडरी स्कूल से मैट्रिक, फिर माध्यमिक शिक्षा और उसके बाद चंडीगढ़ के श्री गुरुगोविंद सिंह काॅलेज से पढ़ाई की है। श्री गुरुगोविंद सिंह काॅलेज से स्नातक करने के बाद उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ से कानून की डिग्री हासिल की है और पीटी जालंधर से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में मास्टर्स की पढ़ाई की है। माना जाता है की चन्नी के पास एक विजन भी है और कांग्रेस के आला कमान का सर पर हाथ भी होगा इसलिए अगर 2022 में कांग्रेस पंजाब में लोटती है तो मानना ही पड़ेगा कि चाहे मास्टर स्ट्रोक भले मजबूरी बना हो लेकिन काम कर गया।