
अपराध बढ़े, कम होती सजाएं
प्रदीप श्रीवास्तव
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) ने 15 सितम्बर को 2020 से संबंधित अपनी ‘भारत में अपराध’ रिपोर्ट जारी की, जिसके अनुसार 2019 की तुलना में 2020 में 28 प्रतिशत की वृद्धि हुई। साल 2020 में नया कोरोनावायरस के कारण लम्बे समय तक राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन रहा, लगभग सभी आर्थिक, शैक्षिक व सामाजिक गतिविधियां स्थगित थीं, लोग अपने अपने घरों में बंद थे। इसके बावजूद अपराधों में इजाफा चिंता का विषय है। हां, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि कोविड-19 नियमों के उल्लंघन की वजह से भी अपराधों में वृद्धि हुई। लेकिन अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के विरुद्ध अपराधों में क्रमशर: 9.4 प्रतिशत व 9.3 प्रतिशत का इजाफा इस तथ्य की ओर संकेत करता है कि क्राइम पर कोरोना का कोई असर नहीं पड़ा है, जबकि अनुमान यह था कि कोविड-19 संक्रमण लोगों को अपराध करने से रोकेगा।
बीते साल 66 लाख से अधिक संज्ञेय अपराध दर्ज हुए, जिनमें से 42.54 लाख भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत थे (जोकि 1961 के बाद सबसे ज्यादा हैं), और 23.46 लाख विशेष व स्थानीय कानूनों (एसएलएल) के तहत थे। 2019 की तुलना में आईपीसी अपराधों में 31.9 प्रतिशत और एसएलएल अपराधों में 21.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई। अपराध प्रति एक लाख की जनसंख्या (आईपीसी व एसएलएल) जो 2019 में 385.5 था वह 2020 में बढ़कर 487.8 हो गया। कोविड प्रोटोकॉल्स का पालन सुनिश्चित करने हेतु मार्च 2020 में आईपीसी की धारा 188 (जनसेवक के आदेशों का उल्लंघन) पूरे देश में लागू की गई थी। इसके तहत अपराधों में 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि अन्य आईपीसी अपराध 2.52 लाख से बढ़कर 10.62 लाख हो गये और एसएलएल अपराध 89,552 से बढ़कर 4.14 हो गये।
हालांकि महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में 2018 व 2019 की तुलना में 2020 में कुछ कमी अवश्य आयी है, लेकिन रोजाना औसतन 77 महिलाओं के साथ बलात्कार होना चिंता का विषय है, जिसका अर्थ है कि लॉकडाउन में भी महिलाएं सुरक्षित नहीं रहीं। विशेषज्ञों का मानना है कि लोकलाज, बदनामी व पारिवारिक कारणों से बलात्कार के अधिकतर मामले रिपोर्ट ही नहीं किये जाते हैं। 2020 में बलात्कार के कुल 28,046 मामले दर्ज किये गये। बलात्कार की कुल पीड़ितों में 25,498 वयस्क थीं और 2,655 की आयु 18 वर्ष से कम थी। आईपीसी की धारा 376 के तहत बलात्कार की जो परिभाषा है, उसके अनुसार देखें तो 2019 (32,033), 2018 (33,356), 2017 (32,559) व 2016 (38,947) की तुलना में 2020 में बलात्कार की वारदातें कम हुई हैं। विशेषज्ञों के अनुसार कोविड-19 संक्रमण का डर व लॉकडाउन में लोगों का घर में रहना इसकी वजह हो सकता है। सबसे ज्यादा बलात्कार के मामले राजस्थान (5,310) में दर्ज हुए और इसके बाद उत्तर प्रदेश (2,769), मध्य प्रदेश (2,339), महाराष्ट्र (2,061) व असम (1,657) हैं। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 997 मामले दर्ज हुए। वैसे 2020 में महिलाओं के विरुद्ध अपराधों के 3,71,503 मामले दर्ज किये गये जोकि 2019 (4,05,326) व 2018 (3,78,236) की तुलना में कम हैं। महिलाओं के विरुद्ध अपराध की जो विभिन्न श्रेणियां हैं, उनमें पति या रिश्तेदारों द्वारा कुरुरता के तहत सबसे अधिक 1,11,549 मामले दर्ज हुए, यानी महिलाओं को उन्हीं के घरों में सुरक्षित रखना भी बड़ी चुनौती है।
बीते वर्ष रोजाना औसतन 80 हत्याएं भी हुईं, और यह तो तब है, जब 2020 में 25 मार्च से 31 मई तक लॉकडाउन के कारण लोगों की आवाजाही पर सख्त पाबंदी थी। 2019 में जब लॉकडाउन नहीं था तो 28,915 हत्याएं हुई थीं, लेकिन 2020 में लॉकडाउन के बावजूद हत्याओं में लगभग एक प्रतिशत की वृद्धि हुई और वह बढ़कर 29,193 हो गईं, जिसका अर्थ है कि कोरोना का क्राइम पर कोई खास असर नहीं पड़ा। जारी किये गये डाटा के अनुसार, सबसे ज्यादा हत्याएं उत्तर प्रदेश (3,779), बिहार (3,150), महाराष्ट्र (2,163), मध्य प्रदेश (2,101) और पश्चिम बंगाल (1,948) में हुईं। सबसे अधिक हत्याएं (38.5 प्रतिशत) 30 से 45 वर्ष आयु वर्ग में हुईं और इसके बाद 35.9 प्रतिशत 18 से 30 वर्ष आयु वर्ग में। लेकिन लॉकडाउन में घरों में रहने का यह परिणाम अवश्य हुआ कि अपहरण के मामलों में 19 प्रतिशत से अधिक की कमी आयी, वह 1,05,036 (2019) से घटकर 2020 में 84,805 रह गये। सबसे ज्यादा अपहरण उत्तर प्रदेश (12,913), पश्चिम बंगाल (9,309), महाराष्ट्र (8,103), बिहार (7,889) व मध्य प्रदेश (7,320) ने रिपोर्ट किये हैं। अपहरण होने वालों में 56,591 बच्चे थे।
एक अन्य चिंता का विषय है साइबर अपराध में हो रही निरंतर वृद्धि। 2018 में 27,248 साइबर अपराध रिपोर्ट हुए थे, जिनकी संख्या 2019 में बढ़कर 44,735 हो गई और 2020 में यह 50,035 थी, यानी 11.8 प्रतिशत का इजाफा। इसके अतिरिक्त 2020 में सोशल मीडिया पर फेक न्यूज के 578 मामले, महिलाओं की साइबर स्टाकिंग के 972 मामले, 149 फेक प्रोफाइल और 98 डाटा चोरे के मामले भी रिपोर्ट किये गये। साइबर अपराध में प्रति लाख जनसंख्या के हिसाब से भी वृद्धि हुई है जो 3.3 प्रतिशत (2019 से बढ़कर 3.7 प्रतिशत (2020) हो गई है। अधिकतम साइबर अपराध उत्तर प्रदेश (11,097), कर्नाटक (10,741), महाराष्ट्र (5,496), तेलंगाना (5,024) व असम (3,530) से रिपोर्ट किये गये।
राज्य के विरुद्ध अपराध करने के आरोप में 2019 में 12,140 व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया था, जिसमें 2020 में 26.7 प्रतिशत की कमी आयी और 7,607 व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया। इनमें से सबसे ज्यादा गिरफ्तारियां (39 प्रतिशत) उत्तर प्रदेश में की गईं। यह गिरफ्तारियां आईपीसी की धाराएं 121-123, 124ए (राजद्रोह) व 153बी (राष्ट्रीय एकता के लिए हानिकारक) और यूएपीए, ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट व सार्वजनिक सम्पत्ति को नुकसान कानून के तहत की गईं।
बहरहाल, एक तरफ जहां लगभग हर प्रकार के अपराध में वृद्धि हुई वहीं अदालतों में अपराध साबित होने व सजा दिए जाने की दर काफी कम रही। मसलन, 2020 में पुलिस के समक्ष दंगा संबंधित 81,846 मामले जांच हेतु आये, जिनमें से 43,063 मामलों में चार्जशीट दाखिल की गई, जबकि पहले से ही 5,19,589 केस ट्रायल के लिए लम्बित पड़े हैं। लेकिन सिर्फ 4,613 केस में ही सजा हुई है, जिससे दोषसिद्धि दर मात्र 29 प्रतिशत रही। इसी तरह पुलिस ने हत्या के 50,258 मामलों में जांच की (जिनमें से कुछ पिछले वर्ष के भी थे) और 24,015 में आरोपपत्र दाखिल किये। 2020 के अंत में हत्या के 2,32,859 मामले ट्रायल के लिए लम्बित थे। बलात्कार के मामलों में, 2020 में 43,000 की जांच हुई और 23,693 में आरोपपत्र दाखिल हुए और सिर्फ 3,814 (39 प्रतिशत) पर आरोप सिद्ध हुए। इस डाटा से मालूम होता है कि आरोपसिद्धि की दर बहुत दयनीय है, जिसकी वजह खराब जांच या आरोपी पर आईपीसी की गलत धाराएं लगाना हो सकता है। जुर्म के अनुपात में जब तक त्वरित सजा नहीं दी जायेगी तब तक अपराधों को नियंत्रित करना कठिन है, इसलिए पुलिस महकमे को दुरुस्त करने की आवश्यकता है।