
बच्चों को अपनी चपेट में लेने वाले रहस्यमयी बुखार
शाहिद ए चौधरी
स्वतंत्रता दिवस के आस-पास उत्तर प्रदेश, विशेषकर उसके पश्चिमी हिस्से, के अनेक जिलों में अचानक एक ‘रहस्यमय बुखार’ से लोग मरने लगे, जिनमें बच्चों की संख्या अधिक थी। यह सिलसिला अभी तक जारी है बल्कि बढ़ता ही जा रहा है। अब तो इस प्रकार के मामले बिहार, झारखंड, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक आदि राज्यों से भी रिपोर्ट किये जा रहे हैं। इस बुखार के लक्षण लगभग कोविड-19 जैसे ही हैं कि तापमान बहुत अधिक हो जाता है और सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। रोगी को ऑक्सीजन देने की भी आवश्यकता होती है। इसलिए यह आशंका भी व्यक्त की गई है कि कहीं यह कोविड-19 ही तो नहीं है?
इस ‘रहस्यमय बुखार’ से मरने वालों की संख्या का कोई आधिकारिक डाटा नहीं है, लेकिन अखबारी रिपोर्टों से मालूम होता है कि अकेले उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले में मृतकों की संख्या 130 से अधिक हो गई है, जिसमें 80 प्रतिशत के करीब बच्चे हैं। मेरठ में तो मात्र दो वर्ष के बच्चे भी इस रोग से पीड़ित होने के कारण अस्पताल में भर्ती कराए गये हैं। अनुमान यह है कि रोगियों की संख्या हजारों में है और कमजोर स्वास्थ व्यवस्था के कारण स्थिति लगातार चिंताजनक होती जा रही है। इस संदर्भ में तुरंत राष्ट्रीय स्तर पर एक्शन की जरूरत है क्योंकि अब यह समस्या एक जिले या एक राज्य तक सीमित नहीं है।
सवाल है आखिरकार यह ‘रहस्यमय बुखार’ है क्या? डाॅक्टरों की जिन टीमों ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रभावित जिलों में इस बीमारी की समीक्षा की है, उन्होंने इसके कोविड-19 होने से तो इंकार किया है, लेकिन वह किसी ठोस नतीजे पर भी नहीं पहुंचे हैं। उनके अनुसार बुखार डेंगू वायरस के डी2 स्ट्रेन से हो रहा है और कुछ मौतें स्क्रब टाईफस के कारण हुए मैनिंजाइटिस (मस्तिष्क ज्वर) से भी हुई हैं। साथ ही जापानीज इन्सेफेलाइटिस, मलेरिया व टाइफाइड के मामले भी रिपोर्ट किये गये हैं। अभी देश कोविड-19 से ही जूझ रहा है कि नये संक्रमण के रोजाना 34,000 से अधिक केस आ रहे हैं और 300 से ज्यादा मौतें हो रही हैं, तीसरी लहर की आशंका भी बनी हुई है। ऐसे में इस बुखार का आना और सितम्बर में भी मूसलाधार बारिश का होना कोढ़ में खाज का काम कर रहा है। अगर यह बुखार मच्छरों के कारण फैल रहा है, जैसा कि प्रबल अनुमान है, तो बारिश से परेशानी में वृद्धि ही हो रही है। जगह जगह पानी भर गया है, जिसमें मच्छरों को ब्रीड करने का अवसर मिल रहा है। हाइजीन व सैनिटेशन को बनाये रखना बहुत बड़ी चुनौती बन गई है।
गौरतलब है कि भयंकर बारिश के चलते उत्तर प्रदेश सरकार को दो दिन के लिए स्कूल भी बंद करने पड़े थे, जिनमें कोविड-19 के डर के कारण पहले ही उपस्थिति 30-35 प्रतिशत ही चल रही थी। बारिश की वजह से भी उत्तर प्रदेश में लगभग 15 मौतें हुईं। कोविड-19 जैसे लक्षण वाले बुखार को नियंत्रित करने के प्रयासों में उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त निदेशक (स्वास्थ्य) एके सिंह के अनुसार बारिश के कारण बाधाएं उत्पन्न हो रही हैं, जबकि फिरोजाबाद के सीएमओ दिनेश कुमार प्रेमी का कहना है कि जिले के 64 सक्रिय कैम्पों में 4,500 व्यक्तियों का उपचार चल रहा है। अखबारी रिपोर्टों में कहा गया है कि इस जिले में कम से कम 12,000 व्यक्ति बुखार के कारण घर पर या प्राइवेट अस्पतालों में बिस्तरों पर पड़े हैं। आगरा, मथुरा, अलीगढ़, मेरठ, हापुड़, बागपत आदि जिलों से मिल रही खबरों में भी बुखार मरीजों के लिए सरकारी अस्पतालों में कम पड़ते बिस्तरों का उल्लेख किया गया है, जिससे यह अंदाजा होता है कि रोगियों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है।
बिहार में, सरकारी डाटा से मालूम होता है कि सितम्बर में लगभग 7,000 बच्चे राजकीय स्वास्थ्य संस्थाओं में बुखार व अन्य फ्लू-संबंधित लक्षणों के उपचार हेतु आये। अब तक 15 बच्चों की मौत रिपोर्ट की गई है। बिहार स्वास्थ्य विभाग में विशेष सचिव संजय कुमार सिंह का अनुमान है कि उमसभरा वातावरण व बाढ़ का कम होता पानी बच्चों के बीमार पड़ने का कारण हो सकता है। बिहार के पड़ोसी राज्य झारखंड में भी ‘रहस्यमय बुखार’ का भय व्याप्त है, लेकिन आधिकारिक तौरपर इसे जापानीज इन्सेफेलाइटिस बताया गया है। झारखंड के एंटोमोलोजिस्ट एस सिंह का कहना है, “पूर्वी सिंहभूम में एक महिला कि एक सप्ताह पहले मौत हुई थी। मृत्यु का कारण रहस्यमय था। लेकिन गहन जांच करने पर मालूम हुआ कि वह जापानीज इन्सेफेलाइटिस से पॉजिटिव थी।” इंदिरा गांधी इंस्टिट्यूट ऑफ चाइल्ड हेल्थ, बंग्लुरु के निदेशक डा. केएस संजय का कहना है कि कर्नाटक में बच्चों में वायरल फीवर व डेंगू के मामले तो रिपोर्ट हो रहे हैं, लेकिन अभी तक किसी के मरने की खबर नहीं आयी है। सरकार द्वारा संचालित बाल अस्पताल में पिछले दो माह के दौरान डेंगू के 40 केस आये हैं।
हालांकि उत्तराखंड सरकार ने स्पष्ट कहा है कि उसके राज्य में स्क्रब टाईफस का कोई मामला प्रकाश में नहीं आया है, लेकिन स्थानीय अखबारों में अगस्त व सितम्बर में स्वास्थ विभाग के हवाले से जो खबरें प्रकाशित हुई हैं उनमें उत्तराखंड के अनेक जिलों में स्क्रब टाईफस के रोगियों के होने का जिक्र है। मध्य प्रदेश में जुलाई से अब तक डेंगू के 2,500 से अधिक मामले प्रकाश में आये हैं। विशेषज्ञ स्वीकार करते हैं कि रोग संचरण के मौसम में डेंगू, चिकनगुनिया, मलेरिया, स्क्रब टाईफस, लेप्टोस्पिरोसिस, टाइफाइड आदि रोगों को नियंत्रित करना चुनौतीपूर्ण होता है। उत्तर मध्य प्रदेश के जिन जिलों की सीमाएं उत्तर प्रदेश से मिलती हैं उनमें अलर्ट है। यही हाल राजस्थान में भी है। वहां भी स्वास्थ्य अधिकारियों के अनुसार डेंगू के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है।
उत्तरी बंगाल में इस सप्ताह 100 से अधिक बच्चे बुखार के कारण अस्पतालों में भर्ती हुए हैं, जिनमें से पांच की मौत हो चुकी है और स्वास्थ्य अधिकारी इस बुखार का कारण या रहस्य अभी तक समझ नहीं पाए हैं। अधिकारियों के अनुसार कोलकाता में भी बुखार के अनेक मामले सामने आये हैं, लेकिन अभी कोई मौत रिपोर्ट नहीं हुई है। जांच में इन रोगियों में से कोई भी कोविड-19 या डेंगू के लिए पॉजिटिव नहीं पाया गया है, इसलिए भी बुखार का कारण अब तक मालूम नहीं हो सका है। विभिन्न राज्यों में कोविड जैसे लक्षणों वाले बुखार के सैंकड़ों मामले कई माह से निरंतर रिपोर्ट हो रहे हैं, इनकी संख्या लगातार बढ़ती भी जा रही है और मौतें भी हो रही हैं। बुखार के मरीज जिन स्थितियों में उपचार कराने के लिए मजबूर हैं उनसे स्वास्थ्य व्यवस्था पर अनेक गंभीर प्रश्न खड़े होते हैं।
ऐसा प्रतीत होता है कि कोविड महामारी से भी कोई सबक लिया नहीं गया है। ‘रहस्यमय बुखार’ को कई राज्यों ने मौसमी रोग संचरण से जोड़ा है, जो संभव हो सकता है, लेकिन सवाल यह है कि जो बीमारियां हर साल आती हैं उनसे निपटने के लिए उचित स्वास्थ्य, हाइजीन व सैनिटेशन व्यवस्था क्यों नहीं है? दरअसल, जब तक स्वास्थ्य चुनावी मुद्दा नहीं होगा तब तक सुधार की गुंजाइश कम ही लगती है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)