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ब्राजील ने पेटेंट को तोड़ने की इजाजत देने वाला कानून
कोरोना वायरस संक्रमण से कोविड—19 महामारी को रोकने के क्रम में पेटेंट के नियमों को लेकर दुनियाभर के देशों में विवाद पैदा हो गया था. इसे लड़ी जा रही जंग में दुनिया के कई देश चाहते हैं कि कोविड-19 की वैक्सीन बनाने के लिए पेटेंट के नियमों में ढील दी जाए, ताकि विकासशील और गरीब देश अपनी—अपनी जरूरतों के हिसाब से वैक्सीन बना सकें. पेंटेंट के सख्त नियमों के चलते ऐसा कर पाना किसी भी देश के लए संभव नहीं हो पाया. जिस कारण गररीब देशों के लिए अपने स्तर से वक्सीन विकसित नहीं कर पाए. उन्हें चुनिंदा कंपनियों की वक्सीन खरीदनी पड़ी.
इसे देखते हुए हाल में ही ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोल्सनारो ने एक ऐसे कानून पर दस्तखत किए हैं, जिसके आधार पर देश को आपातकाल में पेटेंट नियमों का उल्लंघन करने की इजाजत मिल सकती है. इस कानून के तहत कोविड-19 जैसे स्वास्थ्य संबंधी आपातकाल में पेटेंट के नियमों का उल्लंघन किया जा सकता है. हालांकि बोल्सनारो ने कानूनों के उन प्रावधानों पर वीटो कर दिया जिनमें पेटेंटधारकों को वैक्सीन और दवाएं बनाने के लिए जरूरी जानकारी और सामग्री की सप्लाई करने के लिए कहा गया था. राष्ट्रपति कार्यालय की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि उन प्रावधानों को इसलिए हटाया गया क्योंकि उन्हें लागू करवाना मुश्किल होता और वे नई तकनीकों में शोध के लिए होने वाले निवेश को हतोत्साहित करते. बोल्सोनारो इस कानून के समर्थन में नहीं थे और उन्होंने इसे ब्राजील के व्यवसायिक हितों को नुकसान पहुंचाने वाला बताया था. इस कानून के तहत राष्ट्रपति ही फैसला कर सकता है कि आपातकाल के वक्त कब किसी पेटेंट नियम का उल्लंघन किया जाए. कोवडि19 वैक्सीन के लिए भारत 100 से अधिक देश चाहते हैं पेंटेंट से मुक्ति
हालांकि इस संबंध में भारत और दक्षिण अफ्रीका ने पिछले साल सितंबर में ही विश्व स्वास्थ्य संगठन में एक प्रस्ताव पेश किया था, जिसे लेकर अब तक कोई फैसला नहीं हो पाया है. हालांकि 100 से ज्यादा देश इस प्रस्ताव का समर्थन कर चुके हैं, जिसके तहत कोविड वैक्सीन बनाने के लिए पेटेंट के नियमों को अस्थायी तौर पर स्थगित कर देने की बात कही गई है. प्रस्ताव पर अब भी विश्व स्वास्थ्य संगठन में विमर्श जारी है. इस प्रस्ताव के समर्थक देशों का कहना है कि पेटेंट मुक्त होने से विकासशील देशों में उत्पादन बढ़ेगा और ज्यादा से ज्यादा लोगों को जल्द से जल्द वैक्सीन लगाई जा सकेगी जो कोरोनोवायरस को रोकने के लिए जरूरी है. भारत और दक्षिण अफ्रीका के प्रस्ताव को अमेरिका और चीन समेत कई दर्जन देशों का समर्थन मिला है. लेकिन यूरोपीय देश और जापान व कोरिया इस प्रस्ताव के तगड़े विरोधी हैं. रॉकवेल ने कहा कि देशों का एक समूह ऐसा भी है जो इस समस्या का व्यवहारिक हल चाहता है. दुनिया की बड़ी दवा कंपनियां और उनके देश इस प्रस्ताव का तीखा विरोध कर रहे हैं. उनका तर्क है कि उत्पादन बढ़ाने में पेटेंट अधिकार कोई बाधा नहीं हैं. इन कंपनियों का विचार है कि पेटेंट अधिकार से मुक्ति का नई खोजें करने की कोशिशों पर बुरा असर पड़ेगा. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पश्चिमी देशों को चेतावनी दी है कि वे अमीर और गरीब के बीच की खाई को न बढ़ाएं. डब्ल्यूएचओ ने अमीर देशों के अपने नागरिकों को वैक्सीन की तीसरी खुराक देने की योजना की आलोचना की है. क्या है पेटेंट कानून दरअसल पेटेंट एक अंतरराष्ट्रीय कानून है. इस कानून के तहत अगर कोई कंपनी सबसे पहले कोई यूनिक प्रोडक्ट बनाती है और वह चाहती है कि इस प्रोडक्ट की तकनीक अन्य किसी कंपनी के पास नहीं हो, तो वह WTO में इसके पेटेंट के लिए आवेदन करती है. WTO की जांच में यदि यह साबित हो जाता है कि प्रोडक्ट इससे पहले कहीं नहीं बना और इसकी तकनीकी यूनिक है तो उस कंपनी को पेटेंट का अधिकार दे देता है. इसका सीधा मतलब यह हुआ है कि अभी सिर्फ वो ही कंपनियां वैक्सीन बना सकती हैं, जो लंबे वक्त से इस तरह की वैक्सीन या दवाई बनाती आ रही हैं, इनके अलावा कोई और कंपनी इसमें हाथ आजमा नहीं सकती हैं. यही कारण है कि दुनिया में इस वक्त चिन्हित कंपनियों के हाथ में ही वैक्सीन का प्रोडक्शन है. लेकिन अगर ये हट जाता है तो कोई भी फार्मा कंपनी वैक्सीन का निर्माण कर सकती हैं, सिर्फ उन्हें वैक्सीन के फॉर्मूले और जरूरी टेक्नोलॉजी, पावर की जरूरत होगी.