साहित्य और संगीत से लेकर सत्ता तक
भारतीय हिंदी साहित्य में गरीबी, शोषण और उत्पीड़न की जीवन
की विवधताओं को बेवाकी के साथ दर्शाया गया है. उनके साहित्यकारों रचनाओं की चर्चा आज भी होती है. साथ ही वे आज भी बड़े चाव के साथ पढ़े जाते हैं. वह यादगार बनकर रह गया है. वैसे रचनाकारों में एक थे मुंशी प्रेमचंद, जिनकी 31 जुलाई जन्म दिन है.हिंदी साहित्य के सबसे अधिक लोकप्रिय साहित्यकार, उपन्यासकार प्रेमचंद अपने समय के उम्दा लेखकों में नायाब हीरा थे. आज ही के दिन यानी 31 जुलाई 1880 को बनारस के पास समही गांव में हुआ था.वैसे तो इनका नाम धनपतराय श्रीवास्तव था, लेकिन अंग्रेजों की नजरों से बचने के लिए इन्होंने अपने साहित्य पर नाम बदलकर प्रेमचन्द कर लिया था.
इनका शुरूआती जीवन उस तंग और खस्ताहालात में बीता कि इन्हें घर खर्च चलाने के लिए अपना कोट और यहां तक कि किताबें भी बेचनी पड़ीं.बहरहाल, ये इन उन्मादों से कभी दुखी नहीं हुए और साहित्य की ओर झुकाव बना रहा.इन्हें बचपन से ही उर्दू की तालीम दी गई थी, सो इन्होंने उर्दू के तमाम उपन्यास पढ़े.
इसके बाद इनके ऊपर लिखने का ऐसा जुनून सवार हुआ कि इन्होंने 13 साल की उम्र में लिखना शुरू कर दिया. और तब तक लिखा जब तक प्राण शरीर को छोड़ कर नहीं चले गए.प्रेमचंद ने पहली रचना मामू के एक विशेष प्रसंग पर लिखी. और इस तरह से अपनी छोटी सी उम्र में ही प्रेमचंद साहित्यकारों की पंक्ति में खड़े हो गए.इसके बाद इन्होंने कई कहानियां, नाटक, उपन्यास लिख डाले. लेकिन इनकी ख्याति सन 1931 में प्रकाशित उपन्यास 'गोदान' से दूर-दूर तक फैल गई.
'गोदान' प्रेमचंद का सबसे महत्वपूर्ण उपन्यास है, जिसमें इन्होंने ग्रामीण परिवेश और शहरी समाज व उनकी समस्याओं का बारीक चित्रण प्रस्तुत किया है.'गोदान' के अलावा इन्होंने 'गबन', 'निर्मला', 'रंगभूमि', 'सेवा सदन' जैसी एक से एक उत्तम कृतियां भारतीय साहित्य को समर्पित की हैं. उनकी रचनाओं को भारत की प्रमुख भाषाओं के अलावा विदेशी भाषाओं में भी अनुवाद किया गया है.
क्रांतिकारी ऊधम सिंह को फांसी दी
आज ही के दिन यानी 31 जुलाई 1940 को पंजाब में जन्मे क्रांतिकारी ऊधम सिंह को अंग्रेजों ने फांसी पर लटका दिया था.इससे पहले 13 मार्च 1940 को ऊधम सिंह ने अमृतसर में जलियांवाला बाग में मारे गए निहत्थे और निर्दोष भारतीय लोगों की मौत का बदला लेने के लिए माइकल ओ डायर को ताबड़तोड़ गोलियां बरसाकर मौत के घाट उतार दिया था.
गुलाम भारत में 13 अप्रैल 1919 को पंजाब के अमृतसर में कर्नल रेगिनाल्ड डायर ने जलियांवाला बाग में एकत्रित हुए लोगों पर गोलियां चलाने का आदेश दिया था. उस दौर में पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर रहते हुए माइकल ओ डायर ने जलियांवाला बाग घटना का समर्थन किया. इस घअना ने ऊधम सिंह को आग बबूला कर दिया, और वो बदले की भावना के साथ ओ डायर को मारने निकल पड़े.
माना जाता है कि ऊधम सिंह ने डायर को मारने की कसम खाई थी, जिसके लिए उन्होंने करीब 21 साल तक इंतज़ार किया. और वो इस अंग्रेज की खोज करते-करते इंग्लैंड तक पहुंच गए, वहीं सही मौका मिलते ही उसकी हत्या कर दी.
लंदन में केंद्रीय एशियाई सोसाइटी और ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की एक बैठक चल रही थी, जहां ऊधम सिंह भी पहुंचे थे. यहां एक किताब के अंदर छिपा कर लाई गई रिवॉल्वर से ऊधम सिंह ने माइकल ओ डायर को अपना निशाना बनाया.अगर ऊधम सिंह चाहते तो वह भीड़ भरी उस सभा से भाग भी सकते थे, लेकिन उन्होंने वहां से भागने की कोई कोशिश भी नहीं की और अपनी गिरफ्तारी दे दी.
और फिर मामले में एक दिखावटी कानूनी कार्रवाई के बाद इन्हें लंदन में फांसी दे दी गई.
पं. रविशंकर को मिला रेमन मैग्सेसे पुरस्कार
भारत के सुप्रसिद्ध सितार बादक पंडित रविशंकर को आज ही के दिन यानी 31 जुलाई 1992 को एशिया का नोबेल कहे जाने वाला रेमन मैग्सेसे पुरस्कार प्रदान किया गया.
रेमन मैग्सेसे पुरस्कार की शुरूआत असल में फिलीपींस के राष्ट्रपति रेमन मैग्सेसे की याद में रेरमन मैग्सेसे फाउंडेशन द्वारा की गई थीं. ये पुरस्कार सन 1957 से ऐसे एशियाई लोगों व संस्थाओं को दिया जा रहा है, जिन्होंने अपने क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया हो.पं रविशंकर का पूरा नाम पंडित रवींद्र शंकर चौधरी था. इन्होंने अपनी सितार वादन कला से विश्व में भारतीय शास्त्रीय संगीत को एक अलग पहचान दिलाई.
पं रविशंकर ने भारतीय शास्त्रीय संगीत की कला का मिलाप पश्चिम के संगीत से कराया था. शायद यही कारण था कि 1960 के दशक के इंग्लैंड के बहुचर्चित बैंड बीटल्स ने पंडित रविशंकर को 'गॉडफादर ऑफ वर्ल्ड म्यूजिक' तक कह दिया था.
पं रविशंकर का बचपना सुखद रहा. गरीबी नहीं थी, इनका परिवार पढ़ा लिखा और संपन्न था. पिता ऊंचे पद पर कार्यरत एक बैरिस्टर थे. वे 10 साल के रहे होंगे, जब उन्हें संगीत से प्रेम हो गया. वह एक डांसर बनना चाहते थे, लेकिन समय को ये मंजूर नहीं था.
वैसे तो उन्होंने अपने बड़े भाई उदय शंकर के साथ नृत्य सीखना और ऐसे कार्यक्रमों में आना जाना शुरू कर दिया था, लेकिन ये ज्यादा दिनों तक नहीं चला.
प्रसिद्ध संगीतकार उस्ताद अलाउद्दीन ख़ां को अपना गुरु बनाया और संगीत की शिक्षा लेनी शुरू कर दी. लगभग 18 साल की उम्र में इन्होंने डांस छोड़ सितार को ही अपना करियर बना लिया. और लगभग 92 साल की उम्र तक सितार वादन किया.
औरंगजेब ने कराया राज्याभिषेक
सन 1658 ई. में आज ही के दिन यानी 31 जुलाई को मुगल शासक औरंगजेब ने अबुल मुजफ्फर मुहीउद्दीन मुजफ्फर औरंगज़ेब बहादुर आलमगीर की उपाधि के साथ अपना राज्याभिषेक कराया.
3 नवंबर 1618 को दोहन में पैदा हुआ औरंगजेब मुगल बादशाह शाहजहां की औलाद था. इसका दादा अकबर जितना उदार हृदय माना जाता था, औरंगजेब उससे लाख कट्टर था.
मुस्लिम धर्म के प्रचार प्रसार के लिए जो भी क्रूरता ये कर सकता था, की और अन्य धर्मों के तीज त्यौहारों पर रोक लगा दी और उनके धर्म गुरुओं को मुस्लिम धर्म अपनाने के लिए बाध्य किया. तक तक जब तक कि वो शहीद न हो गए, उन्हें प्रताड़ित किया गया.
बहरहाल, पिता के बीतार होने के बाद चारों लड़कों में उत्तराधिकार की लड़ाई छिड़ गई, जिसमें खूनी संघर्ष के बाद औरंगजेब विजयी रहा और उसने अपना राज्याभिषेक दिल्ली में करा लिया.
उसने मुगल साम्राज्य पर अपना अधिकार जमाने के लिए अपने भाईयों की हत्या की. और फिर आगरा के किले पर कब्जा कर लिया, जहां इसने सबसे पहले अपने बाप को कैद किया और खुद गद्दी पर बैठ गया.
गांधी ने बनवाया अपना आश्रम
देश के स्वतंत्रता संग्राम में 31 जुलाई के दिन का खास महत्व है। दरअसल दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद महात्मा गांधी ने गुजरात के अहमदाबाद में साबरमती नदी के किनारे अपना आश्रम बनाया और यहां जीवन के कुछ नये प्रयोग किए जैसे खेती, पशु पालन और खादी। इसी आश्रम से महात्मा गांधी ने देश के स्वतंत्रता संग्राम का ताना बाना बुनना शुरू किया। गांधी जी ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ कई जन आंदोलनों का नेतृत्व किया और साबरमती आश्रम सत्याग्रह और डांडी मार्च जैसे आंदोलनों का साक्षी रहा। गांधी जी ने हालांकि 31 जुलाई 1933 को साबरमती आश्रम छोड़ दिया, लेकिन उनकी यादों को आज भी इस आश्रम में सहेजकर रखा गया है।
थाई प्लेन दुर्घटना
यह हादसा इस दिन की एक बुरी याद के रूप में लोगों के दिलों में आज भी जिंदा है. 31 जुलाई 1992 को थाई एयरलाइंस के एक विमान ने 113 लोगों को लेकर नेपाल की राजधानी काठमांडू से उड़ान भरी.मगर, खराब मौसम के कारण वह फ्लाइट अपनी मंजिल पर पहुंचने से पहले ही क्रैश हो गई. दरअसल, खराब मौसम के कारण जहाज ने नेपाल के पहाड़ी क्षेत्र में प्रवेश किया.
जहाज के पायलट को लगा कि इस मौसम में आगे जाना खतरनाक साबित हो सकता है. इसलिए उसने कंट्रोल रूम में कॉल कर बताया कि वह आगे नहींं जा सकते क्योंकि, मौसम बहुत खराब है.
जहाज के पायलट ने आखिरी बार जो बताया उसके मुताबिक वह जहाज को भारत में लैंड करने के लिए ले जा रहा था.
हालांकि, कुछ ही देर बाद कंट्रोल रूम का कनेक्शन जहाज से टूट गया और जहाज रडार से भी गायब हो गया.कुछ समय बाद बचाव टीम को जहाज का पता लगाने के लिए भेजा गया, लेकिन जहाज का कोई पता ठिकाना नहींं मिला.
बाद में पता चला कि जहाज अघोर गांव के नजदीकी क्षेत्र में क्रैश हो गया था. जहाज के बारे में पता लगते ही करीब 1500 लोगों की एक बचाव टीम को मौके पर भेजा गया.हालांकि, क्रैश के बाद जहाज में मौजूद 113 लोग मारे गए. कोई भी इसमें बच नहींं पाया. इस विमान में मौजूद सभी नागरिक विदेशी थे.
नोबेल विजेता अर्थशास्त्री मिल्टन फ्राइडमैन का जन्म
31 जुलाई का दिन अमेरिका के महान अर्थशास्त्री मिल्टन फ्राइडमैन के जन्मदिवस के रूप में भी जाना जाता है.31 जुलाई 1912 में न्यूयॉर्क के ब्रूकलिन में पैदा हुए फ्राइडमैन जब एक साल के थे, तो उनका परिवार उन्हें ब्रूकलिन से राहवे ले आया.
यहां उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा हासिल की. स्कूल में उन्होंने अपने लिए स्कॉलरशिप जीती और आगे की पढ़ाई के लिए रटगर्स यूनिवर्सिटी चले गए.यहां से उन्होंने 1932 में गणित और अर्थशास्त्र में स्नातक की पढ़ाई पूरी की. अपनी पढ़ाई के दौरान फ्राइडमैन अपने एक शिक्षक से बेहद प्रभावित हुए.
वह अपने शिक्षक की ही भांति अर्थशास्त्र पर शोध करने लगे. इसके बाद उन्होंने 1933 में यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो से एम.ए की और फिर 1946 में कोलंबिया यूनिवर्सिटी से पी.एच.डी पूरी की.करीब 2 साल बाद फ्राइडमैन ने नेशनल ब्यूरो ऑफ इकोनोमिक रिसर्च में नौकरी कर ली. विश्वयुद्ध के दौरान फ्राइडमैन एक कमेटी का हिस्सा भी रहे, जो विश्वयुद्ध के दौरान हो रही रिसर्च का हिसाब-किताब रखती थी.
कुछ वर्षों बाद वह शिकागो में प्राइस थ्योरी और मोनेटरी इकोनॉमिक्स पर अधारित कोर्स की शिक्षा देने लगे. उन्होंने अपने जीवन में कई उपलब्धियां हासिल की और अर्थशास्त्र के क्षेत्र में अपना बड़ा योगदान दिया.इसकी बदौलत साल 1976 में उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. आखिर में 16 नवंबर 2006 में सैन फ्रांसिस्को में उनकी मौत हो गई.
अमेरिका के 17वें राष्ट्रपति की पूण्य तिथि
अमेरिका के लोगों के लिए 31 जुलाई का दिन काफी मायने रखता है. ऐसा इसलिए क्योंकि, इसी दिन साल 1875 में अमेरिका के 17वें राष्ट्रपति एंड्रयू जॉनसन की मौत हुई थी.
एंड्रयू राष्ट्रपति लिंकन की हत्या के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे. एंड्रयू का जन्म नॉर्थ कैलिफोर्निया में 29 दिसंबर 1808 में हुआ था.
जब एंड्रयू महज 3 साल के थे, तो उनके पिता जैकब जॉनसन की मौत हो गई थी. इसके चलते उन्हें अपना बचपन गरीबी में काटना पड़ा.बड़े होने पर जॉनसन ने दर्जी का काम करना शुरू कर दिया. उनका टेलर का बिजनेस काफी अच्छा चल भी गया और उन्होंने साल 1827 में एलिज़ा मैक्कार्डेल नाम की लड़की से शादी कर ली.
उनके राजनीतिक करियर की बात करें, तो जॉनसन को शुरू से ही राजनीति में दिलचस्पी थी. उनकी टेलर की दुकान अक्सर राजनीति के मुद्दे पर बहस करने का अड्डा बनती थी.धीरे-धीरे उन्हें स्थानीय लोगों का साथ मिला और वह उनके हक के लिए आगे बढ़ने लगे. इसके बाद 1829 में वह पहली बार चुनावों में खड़े हुए और जीत कर ग्रीन विला क्षेत्र के मेयर बने.
फिर 1835 में वह टेन्नस्सी स्टेट से मंत्री पद का चुनाव जीते. अपने राजनीतिक कार्यकाल के दौरान जॉनसन ने हमेशा लोगों के हक की बात की.इसकी बदौलत 1853 में वह टेन्नस्सी के गवर्नर नियुक्त हुए. 1965 के अप्रैल माह में जब अब्राहम लिंकन की मौत हुई, तो उस समय जॉनसन उप राष्ट्रपति थे.इन हालातों में राष्ट्रपति पद के लिए जॉनसन का नाम पहली पसंद था. फिर एंड्रयू जॉनसन ने अमेरिका के 17वें राष्ट्रपति की शपथ ली. उनका कार्यकाल 5 वर्षों का रहा. उनकी मौत 31 जुलाई 1875 में हुई.
38 साल तक चलने वाला ऑपरेशन बैनर
ब्रिटिश इतिहास के मद्देनजर 31 जुलाई का दिन बेहद खास माना जाता है. साल 2007 में ब्रिटिश आर्मी के सबसे लंबे समय तक चलने वाले ऑपरेशन बैनर का अंत हुआ था.यह ऑपरेशन करीब 38 साल तक चला था. इस ऑपरेशन को उत्तरी आयरलैंड में पुलिस द्वारा साल 1969 में शुरू किया गया था.
यह मिलिट्री अभियान विद्रोहियों के खिलाफ छेड़ा गया था. इस अभियान के दौरान करीब 763 सिपाहियों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी.यहां तक की सैन्य अभियान के दौरान होने वाली गोलीबारी में कई बार सेना की गोलियों का शिकार मासूम लोगों को भी होना पड़ता था.
ऐसा ही एक हादसा 1972 में हुआ था, जब सैनिकों की गोलीबारी में 13 लोगों की मौत हो गई थी. इस सब की शुरुआत साल 1969 के जुलाई महीने में डेर्री क्षेत्र से हुई.वहां विद्रोहियों का एक बड़ा समूह सड़कों पर उतर आया. तीन दिन तक लोगों को समझाने के बाद भी जब हालात ठीक नहींं हुए, तो शाही फौज को हालात पर काबू पाने के लिए तैनात कर दिया गया.हालांकि, लोग पीछे हटने को तैयार नहीं थे. इस दौरान सेना द्वारा लोगों को चेतावनी दी गई कि अगर कोई भी शख्स किसी भी तरह की हिंसक गतिविधि को अंजाम देता है, तो उसे गोली मार दी जाएगी.
मगर, बावजूद इसके लोगों ने सेना पर हमला किया और इस दौरान 6 सिपाहियों की जान चली गई. हालात को बिगड़ता देख 1971 में उत्तरी आयरलैंड के प्रधानमंत्री ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया.
इस साल विद्रोहियों और सेना की भिड़ंत में 44 सिपाही और 6 अलेस्टर डिफेंस रेजिमेंट के सदस्य मारे गए. इसके बाद यह जंग कई वर्षों तक चलती रही.आखिर में साल 2007 में सेना ने हालातों पर पूरी तरह से काबू पा लिया. साथ ही 31 जुलाई के दिन इस ऑपरेशन को औपचारिक रूप से बंद करने की घोषणा भी कर दी गई.
अन्य प्रमुख घटनाओं का सिलसिलेवार ब्यौरा :-
1658 : मुगल सम्राट औरंगजेब ने स्वयं को मंगोल का राजा घोषित किया।
1865 : ऑस्ट्रेलिया में दक्षिण पूर्व क्लीव्सलैंड ग्रैडचेस्टर शहर में विश्व की पहली छोटी रेल लाइन शुरू।
1880 : प्रसिद्ध हिन्दी कहानीकार और उपन्यासकार प्रेमचंद का जन्म।
1924 : मद्रास प्रेसीडेंसी क्लब ने रेडियो प्रसारण संचालित करने का बीड़ा उठाया।
1933 : राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने साबरमती आश्रम छोड़ा।
1940 : स्वतंत्रता सेनानी ऊधम सिंह का निधन।
1948 : भारत में कलकत्ता में पहली राज्य परिवहन सेवा की स्थापना।
1980 : हिंदी फिल्मों के महान पार्श्व गायक मोहम्मद रफी का निधन।
1982 : सोवियत संघ ने परमाणु परीक्षण किया।
1992 : नेपाल की राजधानी काठमांडू में थाईलैंड का विमान दुर्घटनाग्रस्त, 113 लोगों की मौत।
1993 : भारत के पहले तैरते हुए समुद्री संग्रहालय का कलकत्ता (अब कोलकाता) में उद्घाटन।
2006 : फिदेल कास्त्रो ने अपने भाई को सत्ता सौंपी थी ।
2006 : श्रीलंका में युद्ध विराम समझौता समाप्त, एलटीटीई के साथ संघर्ष में 50 लोग मारे गये।
2007 : भारतीय मूल के अमेरिकी डॉक्टर सुधीर पारिख को पाल हैरिस अवार्ड प्रदान किया गया।
2010 : पाकिस्तान में बाढ़ से 900 लोगों की मौत।