
बहुत काम का है इतिहास में दर्ज पहचान का जरिया
हर इनसानी चेहरा दूसरे से अलहदा होता है, यह तो हम सभी जानते हैं, लेकिन एक समय यह बात किसी को नहीं पता थी कि हर इनसान के एक जैसे दिखने वाले हाथों की उंगलियों की लकीरें भी अलग-अलग होती हैं। सर विलियम जेम्स हर्शेल ने सबसे पहले इस बात का पता लगाया और हस्ताक्षर की बजाय उंगलियों की छाप को पहचान का बेहतर माध्यम करार दिया। हर्शेल का जन्म 28 जुलाई को ही हुआ था। हाथ से लिखे शब्दों की नकल तो कोई भी कर सकता है, लेकिन हर इनसान की उंगलियों की छाप एक दूसरे से अलग होती है और उसकी नकल कोई नहीं कर सकता। यही वजह है कि आज इसे पहचान के सबसे सशक्त माध्यम के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है।
चौधरी चरण सिंह बने देश के 5 वें प्रधानमंत्री
28 जुलाई को ही चौधरी चरण सिंह देश के 5 वें प्रधानमंत्री बने थे, हालांकि वह महज 9 माह तक ही प्रधानमंत्री की कुर्सी सभांली थी. दरअसल चौधरी चरण सिंह किसानों के मसीहा माने जाते थे, खुसूसी तौर पर उत्तर प्रदेश राज्य के. कई बार विधानसभा मेम्बर भी रहे. एक बार जब राजनीति में अपना कदम बढ़ाया तो कभी पीछे पलट कर नहीं देखा.
आगे 1960 में इन्हें कृषि मंत्री भी बनाया गया. इसके बाद कांग्रेस की सरकार में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री निर्वाचित हुए, लेकिन वो ज्यादा दिनों तक इस पद पर नहीं रहे. बहरहाल, आपातकाल के बाद जब 1977 में जनता पार्टी के सहयोग से मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री बनाया गया. तब इन्हें देश का ग्रह मंत्री बनाया गया.
इसके कुछ दिनों बाद मोरारजी देसाई और चौधरी चरण सिंह के आपसी इख्तेलाफत सामने आये, जिसका फायदा कांग्रेस ने उठाया और इंदिरा इस बात को बेहतर तरीके से जान चुकी थीं कि, इन दोनों के रिश्ते ख़राब हो गए हैं.
ऐसे में इंदिरा ने चरण सिंह को समर्थन देने को कहा. चरण सिंह ने भी इंदिरा की बात को स्वीकार कर लिया और मोरारजी के खिलाफ बगावत कर दी. इसके बाद कुछ सामाजिक पार्टियों और कांग्रेस के समर्थन से चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री की कुर्सी हासिल करने में कामयाब रहे और 28 जुलाई 1979 को वो देश के 5 वें प्रधानमंत्री के पद पर आसीन हुए.
इसी कड़ी में दिलचस्प यह था कि राष्ट्रपति नीलम संजीव ने उन्हें अपना बहुमत सिद्ध करने के लिए 20 अगस्त तक का वक़्त दिया था, लेकिन 19 अगस्त को ही इंदिरा ने अपना समर्थन वापस ले लिया.
ऐसी परिस्थिति में चौधरी चरण सिंह के पास अपना बहुमत साबित करने का कोई विकल्प नहीं बचा, जिसके बाद राष्ट्रपति ने लोकसभा भंग कर दी और चुनाव की घोषणा कर दी.
ऐसे में वो कार्यवाहक के तौर पर अपने पद पर बने रहे, परन्तु चुनाव का रिजल्ट आने के बाद 14 जनवरी 1980 को इनका कार्यकाल समाप्त हो गया. इस तरह चरण सिंह का कार्यकाल लगभग 9 माह के दरमियान ही रहा.
चित्रकार सुविज्ञ शर्मा का जन्मदिन
28 जुलाई को ही देश के एक मशहूर चित्रकार ने जन्म लिया, दुनिया उसे सुविज्ञ शर्मा के नाम से जानती है. वैसे, इनका पूरा नाम सुविज्ञ रामकृष्ण शर्मा है. सुविज्ञ का जन्म 28 जुलाई 1983 को राजस्थान के मशहूर शहर जयपुर में हुआ. बचपन से ही चित्र बनाना शुरू कर दिया था, फिर तो इसी को अपना करियर बना डाला और एक बेहतरीन चित्रकार के रूप में प्रसिद्ध हो गए.
सुविज्ञ देश के शीर्ष घरानों की भी चित्रकारी की है उनमें अंबानी, मित्तल, बिड़ला, सिंघानिया और बजाज परिवार जैसे उद्योगपतियों का नाम शामिल है. इसी के साथ ही इनके ग्राहकों और प्रशंसकों में बॉलीवुड की नामचीन हस्तियां प्रियंका चोपड़ा, आदित्य चोपड़ा, और रानी मुखर्जी का भी नाम शामिल है.
शर्मा फ्रेस्को वाल पेंटिग्स, प्योर स्टर्लिंग सिल्वर और मकराना मार्बल से निर्मित डिज़ाइनिंग में महारत हासिल है. इनकी कला जयपुर व उदयपुर की हवेलियों, जामा मस्जिद, गोल्ड लिफिंग, सिटी पैलेस और दरगाह पर देखी जा सकती है.
आगे सितंबर 2014 में इस चित्रकार ने 4डी प्रभाव वाली पेंटिंग करके इतिहास रच दिया, जो कि भारत की मात्र एक 4डी पेंटिंग है. इनकी यह पेंटिंग सिद्धिविनायक की बेहद खूबसूरत पेंटिंग है.
इसी के साथ ही 2012 में इनको 29 साल की उम्र में भारत गौरव पुरस्कार से नवाजा गया था.
चारू मजूमदार का हुआ निधन
28 जुलाई को ही चारु मजूमदार ने इस दुनिया को हमेशा के लिए छोड़ दिया था. चारु ही वह शख्स हैं जिन्होंने अपने साथी कानू सान्याल के साथ मिलकर नक्सलवाद को जन्म दिया था.
खैर इनका नक्सलवादी आंदोलन सत्ता के खिलाफ था, जो इन्होंने 1967 में पश्चिम बंगाल के एक छोटे से गांव नक्सलबाड़ी से शुरू किया गया था, इसीलिए इस आंदोलन का नाम नक्सलवादी आंदोलन दिया गया था.
बहरहाल, इनका जन्म 1918 में सिलीगुड़ी में हुआ था. कालेज छोड़ने के बाद इन्होंने कांग्रेस से अपने राजनितिक सफ़र की शुरुआत की और मजदूरों को संगठित करने का काम किया. आगे इन्होंने सीपीआई का दामन थाम लिया और किसान आंदोलन का हिस्सा बने. इसके बाद इन्होंने कई आंदोलनों में भाग लिया, जिसके लिए जेल की हवा भी खानी पड़ी.
सीपीआई का विभाजन हुआ तो चारु मजूमदार सीपीएम में शामिल हो गए. बाद में जब सीपीएम ने कांग्रेस के साथ सरकार बनाने का निर्णय किया तो चारु ने इसे धोखा करार दिया. इसी बीच नक्सलबाड़ी गांव में कुछ गुंडों ने एक आदिवासी किसान पर हमला कर दिया और उसकी ज़मीन पर जबरदस्ती कब्ज़ा कर लिया.
इसके बाद चारू के नेतृत्व में किसान का विद्रोह शुरू हो गया, जिसको सीपीआईएम के संयुक्त मोर्चे वाली सरकार ने दबाने का भरपूर प्रयास किया. इस 72 दिनों के आंदोलन में पुलिस निरीक्षक समेत 9 आदिवासीयों की मौत हो गई थी. तब इस घटना की गूंज पूरे भारत को सुनाई पड़ी थी, जिसके बाद नक्सलवाद का जन्म हुआ.
आगे, 16 जुलाई 1972 को कोलकाता में चारू को गिरफ्तार कर लिया गया. जिसके बाद जेल में इन पर पुलिसकर्मियों द्वारा अधिक यातनाएं दी गई. जिसकी वजह से 28 जुलाई को लाल बाज़ार पुलिस लॉक अप में इनकी मृत्यू हो गई.
इन दस दिनों में इनसे किसी को भी नहीं मिलने दिया गया था. न इनके वकील और न ही डॉक्टर से यहां तक कि इनके परिवार से भी इनको मिलने की इजाजत नहीं थी, हालांकि इनके मारने के बाद नक्सलवाद का मकसद भी बदल गया आज नक्सलवाद के द्वारा हिंसा की खबरे लगातार सुनाई देती हैं.
काले पर बर्बरता के खिलाफ बुलंद हुई आवाज
उनकी त्वचा का रंग काला था, बस इसी वजह से वो गुलाम बने रहे. मालिक को जब गुस्सा आता तो उन पर कोड़े बरसा देता. लेकिन आज के दिन न्यूयॉर्क में ऐसा कुछ हुआ कि श्वेत समाज को अपनी बर्बरता साफ दिखाई पड़ी. 28 जुलाई 1917, चकाचौंध से भरी अमेरिका की आर्थिक राजधानी न्यूयॉर्क में 10,000 लोगों ने मौन मार्च निकाला. इस दौरान कहीं कोई नारा नहीं था, कोई शोर नहीं था. ऐसा लग रहा था मानो किसी की अंतिम यात्रा निकल रही हो. मौन मार्च के जरिए अफ्रीकी मूल के अमेरिकी नागरिकों ने श्वेत समाज के जुल्म और बर्बरता के खिलाफ सब कुछ कह दिया. चुपचाप पैदल चलते हुए वो यही गुहार कर रहे थे कि अश्वेत लोगों को बात बात पर कोड़े न मारे जाएं.
कई अमेरिकी लेखकों के मुताबिक वो शांति भरा मार्च हजारों शब्दों से भी ज्यादा गूंज रहा था. प्रदर्शन में कई रेड इंडियन, हिस्पैनिक मूल के लोग, एशियाई और श्वेत कार्यकर्ताओं ने भी हिस्सा लिया. न्याय की मांग करते इन लोगों ने ब्रदरहुड और सिस्टरहुड का अधिकार मांगा.
इससे पहले मई 1917 में ईस्ट सेंट लुईस में दंगे हुए थे, जिनमें श्वेत दंगाइयों ने कई अश्वेतों की हत्या कर दी. बताया जाता है कि दंगों में 40 से 250 तक लोग मारे गए. एक तरफ स्वतंत्र अमेरिका का दावा था तो दूसरी तरफ ऐसी ज्यादती. मौन मार्च के जरिए प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति वुडरो विल्सन तक भी अपनी बात पहुंचाना चाहते थे. विल्सन ने वादा किया था कि वो इस अन्याय को रोकने के लिए कानून लाएंगे. लेकिन उनके कार्यकाल में नस्ली हिंसा बहुत ज्यादा बढ़ी.
ये दौर काफी लंबे समय तक चला. आखिरकार 1960 के दशक में एक एक कर कई अमेरिकी राज्यों ने अश्वेत नागरिकों को बराबरी के अधिकार देने शुरू किए. इसमें मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने बड़ी भूमिका निभाई. किंग ने 1963 में वॉशिंगटन के कैपिटोल के पास "आई हैव ए ड्रीम" के नाम से मशहूर हुआ उनका भाषण वह मोड़ था जिसने गोरे और कालों के बीच दीवार गिराने का जोश भर दिया. सिर्फ 35 साल के किंग को नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया लेकिन 40 से कम की उम्र में उनकी हत्या भी कर दी गई. किंग के संघर्ष की वजह से आज अमेरिका में नस्लीय भेदभाव का सामाजिक रूप से बहिष्कार किया जाता है.
महत्वपूर्ण घटनाओं का सिलसिलेवार ब्यौरा इस प्रकार है:-
1586 : इंग्लैंड से वापस लौटने पर सर थामस हेरिओट ने यूरोप को आलू के बारे में बताया।
1741 : कैप्टन बेरिंग ने माउंट सैंट एलियास, अलास्का की खोज की।
1742 : प्रशिया और आस्ट्रिया ने शांति समझौते पर हस्ताक्षर किये।
1821 : पेरू ने स्पेन से स्वतंत्रता की घोषणा की।
1858 : सर विलियम जेम्स हर्शेल का जन्म, जिन्होंने फिंगर प्रिंट को पहचान का बेहतर जरिया बताया।
1866 : अमेरिका में मापने की मीट्रिक प्रणाली को वैधानिक मान्यता मिली।
1914 : प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत।
1914 : एस.एस. कामागाता मारू को वेंकुवर से निकाला गया और भारत रवाना कर दिया गया।
1925 : हेपेटाइटिस का टीका खोजने वाले बारुक ब्लमर्ग का जन्म। 28 जुलाई को ही विश्व हेपेटाइटिस डे मनाया जाता है।
1976 : चीन में रिक्टर पैमाने पर 8.3 की तीव्रता का भूकंप आने से लाखों लोगों की मौत।
1979 : चरण सिंह देश के पांचवे प्रधानमंत्री बने।
1995 : वियतनाम आसियान का सदस्य बना।
2001 : पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री मोहम्मद सिद्दिकी ख़ान कंजू की हत्या।
2005 : सौरमंडल के दसवें ग्रह की खोज का दावा।
2005: आयरिश रिपब्लिकन आर्मी :आईआरए: ने अपने सशस्त्र संघर्ष को रोकने का ऐलान किया और लोकतांत्रिक तरीके से अपना अभियान चलाने की बात कही।