सिराजुद्दौला की बर्बर हत्या, अंग्रेजों के शासन की नींव
जुलाई माह के दूसरे दिन के इतिहास में दो घटनाएं पश्चिम बंगाल से जुड़ी हैं। उनमें एक अंग्रेजों से लड़कर देश को आजाद कराने के समर्थक सुभाषचंद्र बोस की 2 जुलाई, 1940 को की गई गिरफ्तारी का है, जबकि दूसरी घटना बंगाल के अंतिम स्वतंत्र नवाब सिराजुद्दौला की हत्या की है। सुभाष चंद्र बोस पर अंग्रेज शासन ने विद्रोह भड़काने का आरोप लगाया था।
2 जुलाई भारत के इतिहास का एक काला दिन है। बंगाल के अंतिम स्वतंत्र नवाब सिराजुद्दौला की हत्या के साथ ही उनके शासन की समाप्ति को भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन की नींव माना जाता है। सिराजुद्दौला वो शख़्स, जिसकी बर्बर हत्या के बाद भारत में हुआ अंग्रेज़ों का एकछत्र राज प्लासी की लड़ाई में नवाब की सेना के सेनापति मीर जाफर ने धोखा किया और 23 जून, 1757 को बंगाल की सेना रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व वाली ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना से हार गई। हार के बाद दो जुलाई 1757 को जवाब सिराजुद्दौला को पकड़ लिया गया। ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ हुए समझौते के मुताबिक मोहम्मद अली बेग ने नमक हराम देवड़ी में नवाब की हत्या कर दी। सिराजुद्दौला की हत्या को लेकर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और मीर जाफर के बीच समझौता हुआ था। बंगाल के अंतिम नवाब सिराजुद्दौला की कब्र पश्चिम बंगाल में मुर्शिदाबाद के खुशबाग में स्थित है।
हज के दौरान मक्का में भयानक हादसा
हज के दौरान मक्का में 2 जुलाई 1990 को भयानक हादसा हुआ. लाखों लोगों की भीड़ की वजह से भगदड़ मची और करीब 1400 लोगों की जान चली गई.दुनिया भर से हर साल लाखों लोग हज के लिए मक्का पहुंचते हैं. 1990 के हज का यह साल एक दर्दनाक हादसे का गवाह बना. पिछले कुछ सालों में हज के दौरान हुए हादसों में यह सबसे बड़ी घटना थी. पैदल यात्रियों के लिए बनाई गई सुरंग में यह भगदड़ मची. इस्लाम मानने वालों के लिए, अगर हैसियत हो तो, जिंदगी में एक बार हज करना फर्ज है. मुसलमानों के लिए पांच फर्ज हैं जिसमें हज भी है. हर साल दुनिया भर से 20 लाख से ज्यादा लोग हज यात्रा करते हैं. इसमें भारी संख्या में लोगों की मौजूदगी हादसे की वजह बन चुकी है.
इसके अलावा मीना में एक धार्मिक रिवाज के दौरान कई छोटे बड़े हादसे हो चुके हैं. मीना में "शैतान को कंकर मारने" की परंपरा है. 1998 में करीब 110 लोग इस तरह के हादसे में मारे गए और करीब 180 हज यात्री गंभीर रूप से घायल हुए थे. मीना में कंकर मारने के दौरान काफी अफरा तफरी का माहौल होता है. साल 2001 और 2002 में हुए हादसों में 30 से अधिक लोग मीना में अपनी जान गंवा चुके हैं. साल 2003 में एक भगदड़ में वहां 244 तीर्थयात्रियों की मौत हुई थी. साल 2006 में 363 यात्री कभी लौट कर घर नहीं जा पाए.
सिर्फ भगदड़ ही हादसे की वजह नहीं है. साल 1997 में मीना में टेंटों में लगी आग के कारण 340 लोगों की मृत्यु और 1400 से अधिक घायल हुए. 1991 में सऊदी अरब से नाइजीरिया जा रहा हज यात्रियों का विमान हादसे का शिकार हुआ, इसमें 261 यात्रियों की मौत हुई थी. साल 1990 में हुआ हादसा संगठनों और अधिकारियों की विफलताओं का नतीजा था. लंबी सुरंग में कुचलने और दम घुटने के कारण 1426 लोग मारे गए थे. इस हादसे के बाद सुरक्षा के इंतजाम कड़े किए गए लेकिन सफलता सीमित ही रही.
सिवाणा दुर्ग पर अलाउद्दीन खिलजी ने किया आक्रमण
2 जुलाई 1308 में अलाउद्दीन खिलजी ने सिवाणा दुर्ग के किले को अपने कब्जे में लेने के लिए एक बड़ी सेना भेजी थी.हालांकि, जोधपुर में स्थित सिवाणा के दुर्ग का इतिहास बहुत ही गौरवशाली रहा है. शुरुआत में यह पंवारों के अधीन था इसी वंश के वीर नारायण शासक ने इस दुर्ग का निर्माण कराया था, लेकिन कुछ सालों बाद यह दुर्ग चौहानों के अधिकार में आ गया.
इसी दौरान अलाउद्दीन खिलजी ने गुजरात और मालवा को अपने कब्जे में कर लिया था, जिसके बाद वह इनके रास्तों में आने वाले दुर्गों पर भी अपना अधिकार जमाना चाहता था, जिससे आसानी से वह अपना राज इन पर चला सके.
इस नीति को अपनाते हुए उसने सबसे पहले चित्त्तौड़ और रणथम्भौर के किलों पर अपना विजयी पताका फहराया. अपने विजयी अभियान को जारी रखने के लिए सिवाणा के किले पर भी कब्ज़ा करने के लिए एक बड़ी सेना को भेज दिया.इस दौरान यहां का शासक शीतलदेव चौहान था. शीतल देव ने चित्तौड़ और रणथम्भौर जैसे शक्तिशाली किले को अलाउद्दीन खिलजी की सेना के सामने ढाते हुए देखा था. उसके मन में अलाउद्दीन के प्रति एक डर था, लेकिन उसने अपने शासनकाल में कई युद्दों का सामना किया था और वो इतनी आसानी से बिना लड़े अपने किले को अलाउद्दीन के हाथों में नहीं सौपना चाहता था.
अलाउद्दीन की सेना ने किले को चारों तरफ से घेर लिया और दोनों सेनाओं के बीच युद्ध का सिलसिला शुरू हो गया. युद्ध के दौरान चौहान की सेना ने खिलजी की सेना का डटकर मुकाबला किया और इस दौरान चौहान की सेना ने शाही सेना को लंबे समय तक किले को भेदने का कोई मौक़ा नहीं दिया. हालांकि, इस दौरान चौहान की सेना को काफी जान माल का नुक्सान हुआ, लेकिन इसी के साथ ही शाही सेना का भी मनोबल गिर चुका था.
ऐसी परिस्थिति को देखते हुए अलाउद्दीन खिलजी ने खुद अपनी बड़ी सेना के साथ सिवाणा के किले को चारो तरफ से घेर लिया और जब किले में एक लंबे संघर्ष के दौरान रसद और खाद्यय सामग्री का अभाव हो गया तो चौहान ने किले का दरवाजा खोल दिया. इसके बाद दोनों सेनाओं के बीच आमने सामने का मुकाबला हुआ . इस दौरान शीतलदेव मारा गया और अलाउद्दीन खिलजी ने सिवाणा के दुर्ग पर अपना कब्ज़ा जमा लिया.
स्वतंत्रता सेनानी युसूफ मेहरअली ने दुनिया को कहा अलविदा
2 जुलाई 1950 को ही कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापक और देश की आज़ादी में हिस्सा लेने वाले क्रन्तिकारी नेता युसूफ जफ़र मेहरअली का निधन हुआ. मुंबई में जन्में युसूफ मेहरली एक स्वतंत्रता सेनानी और एक बड़े समाज सुधारक थे. युसूफ ने भारतीय किसानों और मजदूरों की स्थिति को सुधारने और इनको मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
इसी के साथ ही इन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कांग्रेस पार्टी से जुड़कर ब्रिटिश साम्राज्यों की खुल कर मुखालिफत की, जिसके लिए इनको कई बार जेल भी जाना पड़ा.
युसूफ मेहर अली ने 1930 के नमक सत्याग्रह में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था, जिसके लिए 1934 में अंग्रेजों ने इनको ब्रिटिश शासन के खिलाफ साजिश रचने के जुर्म में जेल की सलाखों के पीछे धकेल दिया, लेकिन कठोर कारावास की सजा भुगतने के बाद भी युसूफ के क्रन्तिकारी विचारों पर जरा सी नरमी नहीं आई थी
जेल से छूटने के बाद युसूफ ने भारतीय स्वंत्रता संग्राम में हिस्सा लेते रहे और कईयों बार इनको जेल की भी हवा खानी पड़ी और इन्होंने ने ही ‘भारत छोड़ो’ (क्विट इंडिया) और ‘साइमन गो बैक’ का नारा भी दिया था. हालांकि, इनके समर्थकों को तब गहरा दुःख हुआ जब आज़ादी के तीसरे साल ही युसूफ महज 47 साल की उम्र में 2 जुलाई 1950 को इस दुनिया से रुखसत हो गए.
भारत-पकिस्तान के बीच हुआ शिमला समझौता.
आज ही के दिन पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टों और भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के बीच एक बैठक हुई जिसमें शिमला समझौते के तहत इंदिरा और भुट्टो ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किया था.
1971 में भारत पाकिस्तान के एक बड़ा युद्ध हुआ, जिसमें दोनों देशों को काफी जान-माल का नुक्सान उठाना पड़ा, हालांकि इंदिरा ने योजनाबद्ध तरीके से पाकिस्तान के दो टुकड़े करने में कामयाब रही थी और पाकिस्तान से अलग एक नया देश बांग्लादेश बन चुका था.
कुल मिलाकर दोनों देशों के बीच बटवारे से चली आ रही कड़वाहट अब और भी बढ़ गयी थी, हालांकि दोनों देशों के बीच बहाली और शांति वयवस्था के देखते हुए इंदिरा और भुट्टों ने एक मंच पर आने का फैसला किया.
भारत और पकिस्तान के बीच होने वाली इस शिखर वार्ता को 28 जून से लेकर 1 जुलाई तक ही चलाया जाना था. इसी कड़ी में आगे जुल्फिकार भुट्टो अपनी बेटी बेनजीर भुट्टो के साथ शिमला पहुंचे और दोनों देशों के बीच वार्ता का सिलसिला शुरू हुआ.
दोनों के बीच कुछ समझौते पर राय बनी भी कुछ पर नहीं, ऐसी परिस्थति में दोनों देशों के प्रतिनिधि इस समझौते की उम्मीद छोड़ चुके थे कोई हल सामने नहीं आ रहा था, जिसके लिए इस वार्ता की तारीख को भी बढ़ाया गया.
आख़िरकार जब 2 जुलाई 1972 में इंदिरा और भुट्टो के बीच दोबारा बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ और दोनों देशों के कई आवश्यक मुद्दों पर सहमति बनी और इंदिरा और भुट्टो के बीच हुए शिमला समझौते के दस्तावेज पर दोनों के हस्ताक्षर हुए.
1306: अलाउद्दीन खिलजी ने 2 जुलाई को ही सिवाणा के किले पर हमला किया था। तब उस दुर्ग पर कान्हड़देव के भतीजे चौहान सरदार शीतलदेव का कब्जा था।
1934: भारत के महान क्रांतिकारियों में से एक असित भट्टाचार्य का निधन हुआ था।
1940: ब्रिटिश सरकार ने 2 जुलाई, 1940 ई. को विद्रोह भड़काने के आरोप में सुभाषचंद्र बोस को गिरफ्तार कर लिया था।
1948: प्रसिद्ध जनकवि आलोक धन्वा का जन्म हुआ था।
1950: स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक यूसुफ़ मेहरअली का निधन।
1956: तूफ़ानी सरोज का जन्म हुआ था। वह तेरहवीं और पंद्रहवीं लोकसभा के सदस्य चुने गए थे।
1985: आंद्रेई ग्रोमिको को सोवियत संघ का राष्ट्रपति निर्वाचित किया गया था।
2004: भारत और पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने जकार्ता में आपसी बातचीत की।
2004:छत्रपति शिवाजी टर्मिनस स्टेशन को यूनेस्को की विश्व धरोहर समिति द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया।