चुनाव लड़े बिना बने विजेता
सूरत में भाजपा प्रत्याशी मुकेश दलाल को निर्विरोध जीत मिली. उन्हें मतादान और आम चुनाव के रिजल्ट का इंतजार नहीं करना पड़ा. ऐसा गुजरात के सूरत सीट के लिए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार नीलेश कुंभानी का पर्चा रद्द होने के बाद हुआ. इस के बाद बाकी के उम्मीदवारों ने अपना नाम वापस ले लिया था. 7 मई 2024 को मतदान से लगभग दो सप्ताह पहले ही 22 अप्रैल, 2024 को सूरत लोकसभा सीट से भाजपा के उम्मीदवार को निर्विरोध जिता दिया गया.
उल्लेखनीय है कि लोकसभा चुनाव के परिणाम चार जून को आने वाले हैं. इसे लेकर कांग्रेस ने गंभीर सवाल उठाते हुए चुनाव आयोग से सूरत का चुनाव कैंसल कर नए सिरे से चुनाव कराने की मांग की है. कांग्रेस की ओर से नीलेश कुंभानी को इस लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया गया था. चुनाव आयोग ने उनकी उम्मीदवारी खारिज कर दिया, क्योंकि जिला रिटर्निंग अधिकारी ने उनका नामांकन फॉर्म रद्द कर दिया.
लोकसभा चुनाव के इतिहास में अब तक 35 उम्मीदवार ऐसे रहे हैं, जिन्होंने निर्विरोध जीत हासिल की है. समाजवादी पार्टी की डिंपल यादव ने साल 2012 में कनौज लोकसभा उपचुनाव में निर्विरोध जीत हासिल की थी. इसके अलावा, वाईबी चव्हाण, फारुक अबदुल्ला, हरे कृष्ण महताब, टीटी कृष्णामाचारी, पीएम सईद सरीखे नेता भी बिना किसी मुकाबले को लोकसभा पहुंच चुके हैं.
कुछ दिनों पहले अरुणाचल प्रदेश में हुए विधानसभा चुनावों में दस भाजपा उम्मीदवार निर्विरोध जीते थे. मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने 2014 के अरुणाचल प्रदेश विधान सभा चुनाव में भी निर्विरोध जीत हासिल की थी. जून 2011 में भी पेमा खांडू ने कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में मुक्तो विधानसभा क्षेत्र से निर्विरोध उपचुनाव जीता था.
सूरत के कलेक्टर और रिटर्निंग ऑफ़िसर ने 22 अप्रैल को बीजेपी प्रत्याशी मुकेश दलाल को निर्विरोध विजेता घोषित कर दिया है. गुजरात बीजेपी प्रमुख सी आर पाटिल ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर मुकेश दलाल को निर्विरोध निर्वाचित होने पर बधाई दी.
विजेता घोषित किए गए बीजेपी सांसद मुकेश दलाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और राज्य के बीजेपी प्रभारी सी आर पाटिल को धन्यवाद दिया. उन्होंने कहा, "आज गुजरात में, सूरत में, देश में पहला कमल खिला है. ये कमल आदरणीय प्रधानमंत्री और विश्व पुरुष श्री नरेंद्र भाई मोदी के चरणों में अर्पित करता हूं....घटनाक्रम में क्या है? कांग्रेस का फॉर्म रिजेक्ट हुआ और बाकी के उम्मीदवारों ने नरेंद्र मोदी के विकसित भारत की कल्पना को साथ देकर अपना फॉर्म वापस ले लिया. बस यही चीज है."
ये स्थिति तब बन गई जब सोमवार सुबह से सूरत कलेक्टर कार्यालय में आकर एक-एक करके अपने फॉर्म वापस लेने लगे. अन्य दलों की और से, और निर्दलीय चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों ने अपना फॉर्म वापस ले लिया, लेकिन केवल बसपा उम्मीदवार प्यारेलाल भारती ने अपना फॉर्म वापस नहीं लिया था. लेकिन अंत में उन्होंने भी अपना फॉर्म वापस ले लिया और बीजेपी उम्मीदवार को निर्विरोध घोषित कर दिया गया.
कांग्रेस उम्मीदवार के नामांकन पत्र पर आपत्ति जताने के कारणों में थी. कांग्रेस प्रत्याशी नीलेश कुंभानी के नामांकन पत्र पर चार प्रस्तावकों के हस्ताक्षर थे, जिसमें से वे तीन प्रस्तावकों को चुनावी अधिकारी के सामने पेश नहीं कर पाए. 21 अप्रैल को दोनों पक्षों ने रिटर्निंग ऑफ़िसर के समक्ष अपनी-अपनी दलीलें पेश कीं और आख़िरकार कांग्रेसी उम्मीदवार का पर्चा ही ख़ारिज कर दिया गया.
आरोप लगस कि नीलेश ने अपने नामांकन पत्र पर चार में से तीन प्रस्तावकों के फ़र्जी हस्ताक्षरों का इस्तेमाल किया.
जिन तीन प्रस्तावकों ने अपने हस्ताक्षर फ़र्ज़ी होने का दावा किया है वो तीनों ही कांग्रेस प्रत्याशी नीलेश कुंभानी के बेहद क़रीबी हैं. इसमें एक उनके बहनोई, एक भतीजा और एक उनके कारोबारी पार्टनर हैं. चूंकि ये तीनों नीलेश कुंभानी के करीबी लोग हैं, इसलिए सवाल उठ रहे हैं कि उन्होंने ऐसा क्यों किया? घटना के बाद से तीनों लोगों से संपर्क नहीं हो पा रहा है.
आम आदमी पार्टी के नेता ने दावा किया है कि नीलेश कुंभानी के प्रस्तावकों का अपहरण किया गया है.
ऐसा नहीं है कि बीजेपी प्रत्याशी मुकेश दलाल पहली बार निर्विरोध चुने गए हैं. इससे पहले कई नेताओं के साथ ऐसा हो चुका है.
साल 2012 में उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद अखिलेश यादव ने कन्नौज लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद उनकी पत्नी डिंपल यादव इस सीट से खड़ी हुई थीं.
इस सीट पर तीनों प्रमुख दलों -कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी और भारतीय जनता पार्टी ने डिंपल यादव के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारा था.
आखिर में संजू कटियार और दशरथ शंखवार नाम के दो निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी अपना नामांकन वापस ले लिया था, जिसके बाद डिंपल यादव को कन्नौज लोकसभा सीट से निर्विरोध चुना गया है.
इसके अलावा महाराष्ट्र के पहले मुख्यमंत्री और देश के पांचवें उप-प्रधानमंत्रीयशवंत राव चव्हाण 1963 में नासिक लोकसभा सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर निर्विरोध चुने गए थे.
लक्षद्वीप से दस बार के लोकसभा सांसद पी.एम सईद 1971 में निर्विरोध चुने गए थे.1962 में उत्तराखंड (तब उत्तर प्रदेश) की टिहरी संसदीय सीट पर महाराजा मानवेंद्र शाह निर्विरोध चुने गए.
1980 में जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फ़ारूख़ अब्दुल्लाह श्रीनगर से नेशनल कॉन्फ्रेंस की तरफ से निर्विरोध चुने गए.
इसके अलावा कई ऐसे लोकसभा सांसद हैं जो बिना चुनाव लड़े संसद पहुंचे हैं.
वहीं अगर विधानसभा की बात की जाए तो अरुणाचल प्रदेश में ऐसा कई बार देखने को मिला है. यहां बड़ी संख्या में विधानसभा चुनाव के दौरान विपक्ष का उम्मीदवार न होने की वजह से विधायक निर्विरोध चुने गए हैं.